सिद्धकुंजिका स्रोत परम कल्याणकारी || Vaibhav Vyas



 सिद्धकुंजिका स्रोत परम कल्याणकारी

 सिद्धकुंजिका स्रोत परम कल्याणकारी नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा-आराधना में जितना भी वक्त दिया जाए वह कम ही होगा। वैसे भी आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में वक्त की समस्या चहुं ओर नजर आती है। परीक्षा के दिनों में जैसे प्रश्नों के उत्तर की कुंजी मिल जाती है, तो सफलता मिलने वाली रहती है, वैसे ही सिद्धकुंजिका स्रोत मां की उपासना का माध्यम कहा जा सकता है। प्रतिदिन विधि-विधान से पूजा-आराधना नहीं भी हो पाए तो प्रतिदिन सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ परम कल्याणकारी और समस्त कष्ट-बाधाओं को हरने वाला माना गया है। मां दुर्गा के इस पाठ का जो मनुष्य विषम परिस्थितियों में वाचन करता है उसके समस्त कष्टों का अंत होता है। 

श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित सिद्धकुंजिका स्तोत्र- 

शिव उवाच- 

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्। 
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।। 
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्। 
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।। 
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्। 
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।। 
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति। 
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्। 
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।। 

अथ मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊँ ग्लौ हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वलं हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।। 

इति मंत्र।। 

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि। 
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।। 
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनी।।2।। 
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे। 
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।। 
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तुते। 
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।। 
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणी।।5।। 
धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी। 
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।। 
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी। 
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नम:।।7।। 
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।। 
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।। 
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।। 
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे। 
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।। 
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्। 
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।। 
।इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्।

Comments