मुझे स्वीकार है..
एक शिल्पकार एक पत्थर पर ना जाने कितनी चोट करता है तब कहीं जाकर वह पत्थर बूत की शक्ल ले पाता है और अमरत्व को प्राप्त कर लेता है। क्या बिना चोट दिये एक पत्थर को मूर्ति बना पाना संभव हैं? घर में बहुत सुंदर लकड़ी से बना हुआ शो-पीस है, क्या बिना पेड़ से कटे और फिर सुथार द्वारा ना जाने कितनी जगह से काटने से पहले यह संभव था? ऐसे हमारे पास बहुत से उदाहरण मिल जाएंगे जो हमें यह बताएंगे कि बिना संघर्ष के जीवन में निखार कभी नहीं आता है। जब बच्चा चलना सीखता है तो ना जाने कितनी बार गिरता है, फिर उठता हैं, फिर चलता हैं लेकिन हार नहीं मानता। क्योंकि उसके बाल मन को हार पता ही नहीं है, वह तो जीतने के लिए ही हुआ है। हार की संकल्पना हमारे समझदार मन ने की है अन्यथा हार जैसा तो जीवन में कुछ है ही नहीं। केवल और केवल प्रयास छोड़ना हार है, इसके इतर हार का कोई अस्तित्व ही नहीं है।
बहुत से लोग कहते है कि जीवन हमारे हिसाब से नहीं चलता, हम सोचते क्या हैं और होता क्या हैं। जीवन के हर मोड़ पर चोट खाई हैं, समय कभी हमारे पक्ष में नहीं रहा आदि-आदि। लेकिन असल में ऐसा नहीं है, हमें समय के हर बीते क्षण को आने वाले क्षण के साथ जोड़ना पड़ेगा तभी हम बीते हुए समय में आएं कष्टों का प्रयोजन समझ पाएंगे। एक पत्थर की मूर्ति अपनी पूर्णता के समय लगी आखिरी चोट पर पहली चोट का प्रयोजन समझ पाती है और अभिभूत हो जाती हैं। वह पहली चोट अब अनंत सुकून देने वाली हो जाती हैं।
कोई भी व्यक्ति जीवन में कष्ट, तकलीफें और संघर्ष नहीं चाहता और यहीं सत्य हैं कि कितना भी मानसिक रुप से दृढ़ व्यक्ति हो लेकिन यह नहीं सोचेगा कि दुःख आएं। परन्तु आएं हैं यदि कष्ट तो उनको स्वीकार करना और उनसे दो-चार होना ही असली मानसिक परिपक्वता है। जीवन में यदि कुछ पाना है तो यह भी मान कर चलना होगा कि संघर्ष तो आएंगे ही और उस वक्त पीछे नहीं होना, हार नहीं मानना ही हमारी जीत है। हमारा स्वीकार सहजता के साथ विराट होना चाहिए। स्वीकार जीतना विराट होगा हमारा जीवन भी उतना ही भव्य और दिव्य होता चला जाएगा।
Excellent
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteऊँ माधुर्य !! ऊँ शांति !! हे ! सुगंधिता 💐🌹🙏
Deleteकर्म शेष मे प्यारे भगवन तेरा नाम सुजाता है,
धन धन सतगुरू तेरा ही आसरा,
Nice lines
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