अष्टलक्ष्मी स्तोत्र से होते सभी मनोरथ पूर्ण

 अष्टलक्ष्मी स्तोत्र से होते सभी मनोरथ पूर्ण हिंदू धर्म में कार्तिक मास का बहुत अधिक महत्व होता है। कार्तिक मास में भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना के साथ ही मां लक्ष्मी की भी विशेष पूजा- अर्चना विशेष फलदायी मानी गई है। मां लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है। मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा-अर्चना से मां की कृपा प्राप्त होती है। इसके लिए मां का गंगाजल से अभिषेक करें और उसके बाद मां की आरती करें और मां को भोग लगाएं। माता लक्ष्मी के साथ ही भगवान विष्णु की पूजा भी करें। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इस पाठ को करने से घर में सुख- समृद्धि आती है और दुख-दर्द दूर होते हैं। श्री अष्टलक्ष्मी स्त्रोतम्- सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि चंद्र सहोदरि हेममये। मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनी मंजुल भाषिणि वेदनुते। पङ्कजवासिनि देवसुपूजित सद-गुण वर्षिणि शान्तिनुते। जय जय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि परिपालय माम्। अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये। क्षीर समुद्भव मङ्गल रुपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते। मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते। जय जय हे मधुसूदनकामिनि धान्यलक्ष्मि परिपालय माम्। जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि मन्त्र स्वरुपिणि मन्त्रमये। सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते। भवभयहारिणि पापविमोचनि साधु जनाश्रित पादयुते। जय जय हे मधुसूदन कामिनि धैर्यलक्ष्मि सदापालय माम्। जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये। रधगज तुरगपदाति समावृत परिजन मंडित लोकनुते । हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित ताप निवारिणि पादयुते। जय जय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम्। अयि खगवाहिनी मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि ज्ञानमये। गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि सप्तस्वर भूषित गाननुते। सकल सुरासुर देव मुनीश्वर मानव वन्दित पादयुते। जय जय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि परिपालय माम्। जय कमलासनि सद-गति दायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये। अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर भूषित वसित वाद्यनुते। कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शङ्करदेशिक मान्यपदे। जय जय हे मधुसूदन कामिनि विजयक्ष्मि परिपालय माम्। प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये। मणिमय भूषित कर्णविभूषण शान्ति समावृत हास्यमुखे। नवनिद्धिदायिनी कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते। जय जय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम्। धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमी दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये। घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते। वेद पुराणेतिहास सुपूजित वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते। जय जय हे कामिनि धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम्। अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि। विष्णुवक्ष:स्थलारूढे भक्तमोक्षप्रदायिनी।। शङ्ख चक्र गदाहस्ते विश्वरूपिणिते जय:। जगन्मात्रे च मोहिन्यै मङ्गलम शुभ मङ्गलम।  इति श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम सम्पूर्णम।

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