निर्जला एकादशी व्रत कथा
निर्जला एकादशी व्रत कथा निर्जला एकादशी का व्रत करने वालों को इस दिन इससे संबंधित कथा का श्रवण-वाचन अवश्य करना चाहिए। इस दिन व्रत करने वालों को कथा का श्रवण-वाचन करने से व्रत का संपूर्ण फल मिलने वाला रहता है। मान्यताओं के अनुसार कथा के श्रवण-वाचन मात्र से ही सुख-समृद्धि का वास होने लगता है। निर्जला एकादशी व्रत की कथा निम्नानुसार है। कथा के अनुसार, पांडवों में से भीमसेन को भोजन का बहुत शौक था और वह कभी भूखे नहीं रह सकते थे। उनकी माता कुंती, भाई युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव और पत्नी द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत रखते थे, परंतु भीमसेन को भूख के कारण यह संभव नहीं था। उन्होंने इस बारे में ऋषि वेदव्यास से पूछा कि क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे वे सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त कर सकें। ऋषि वेदव्यास ने भीमसेन को बताया कि यदि वे ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को निराहार और निर्जल रहकर व्रत करें, तो उन्हें सभी एकादशियों के व्रत का पुण्य फल प्राप्त हो सकता है। इस व्रत को निर्जला एकादशी कहा जाता है क्योंकि इसमें जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। भीमसेन ने इस व्रत को करने का निश्चय किया। उन्होंने व्रत के दिन जल, भोजन, और फल तक नहीं ग्रहण किया। व्रत की रात को भीमसेन को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ा, परंतु उन्होंने भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत पूरा किया। अगले दिन, द्वादशी के दिन, उन्होंने व्रत का पारण किया। भीमसेन के इस कठिन तप और व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें सभी एकादशियों के व्रत का पुण्य प्रदान किया। जैसे भीमसेन को भगवान विष्णु ने पुण्य फल प्रदान किए, वैसे ही श्रद्धा और विश्वास के साथ इस व्रत को पूर्ण नियमों का पालन करते हुए करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होने वाली रहती है। इस व्रत की धार्मिक महत्ता को देखते हुए, इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ पालन करना चाहिए, जिससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति हो सके।

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