निर्जला एकादशी व्रत के नियम || Vaibhav Vyas



निर्जला एकादशी व्रत के नियम

 निर्जला एकादशी व्रत के नियम निर्जला एकादशी व्रत को करने वालों को इसके नियमों की पालना करना भी जरूरी रहता है, इन नियमों की पालना करने से ही व्रत का संपूर्ण और शुभ फल मिलने वाला रहता है। निर्जला एकादशी व्रत करने के मुख्य नियम इस प्रकार हैं- निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। इस दिन भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं। इस व्रत में भक्त पूरे दिन निर्जला यानि बिना पानी के उपवास रखते हैं। न तो कोई खाना खाते हैं और न ही एक बूंद पानी पीते हैं। केवल श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान का ध्यान करते हैं। भक्तों को दिन में सोना नहीं चाहिए और भगवान के भजन-कीर्तन में लीन रहना चाहिए। रात्रि जागरण करना और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। व्रत की शुरुआत दशमी तिथि की संध्या से होती है। इस दिन संध्यावंदन अनुष्ठान किया जाता है। भक्त पीले वस्त्र धारण करते हैं और भगवान विष्णु की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराकर पीले फूल, चावल, फल आदि अर्पित करते हैं। पूजा के दौरान भक्त ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय , हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे मंत्र का जाप करते हैं। एकादशी व्रत कथा का पाठ किया जाता है और अंत में भगवान की आरती की जाती है। इस दिन बाल कटवाना, दाढ़ी बनाना और प्याज-लहसुन का सेवन वर्जित माना जाता है। भक्तों को काले रंग के वस्त्र पहनने से भी बचना चाहिए। यदि किसी कारणवश पूर्ण उपवास संभव न हो तो फलाहार या एक समय का भोजन किया जा सकता है। हालांकि चावल का सेवन सख्त मना है। बीमार व्यक्ति भी आंशिक उपवास कर सकते हैं। व्रत का पारण अगले दिन द्वादशी तिथि को किया जाता है। इस दिन ब्राह्मणों या जरूरतमंद लोगों को भोजन और दान-दक्षिणा देना शुभ माना जाता है। श्रद्धा और निष्ठा के साथ निर्जला एकादशी व्रत करने से भक्तों को भगवान विष्णु का आशीर्वाद और अनंत सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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