एकादशी व्रत से होता पापों का नाश || Vaibhav Vyas


 
 एकादशी व्रत से होता पापों का नाश 

एकादशी व्रत से होता पापों का नाश एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। माना जाता है इस दिन भगवान विष्णु का व्रत करने से और उनकी पूजा करने से सभी पापों का नाश हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अपरा एकादशी और शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। ज्येष्ठ माह में गर्मी चरम पर होती है और एकादशी में 24 घंटे व्रत किया जाता है, जो बहुत कठिन होता है। वैदिक पंचांग की गणना के अनुसार, इस साल ज्येष्ठ माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ 23 मई 2025 को प्रात:काल 01 बजकर 12 मिनट से हो रहा है, जिसका समापन देर रात्रि 10 बजकर 29 मिनट पर होगा, इसलिए व्रत इसी दिन रखा जाएगा। अपरा एकादशी पूजा मुहूर्त- विष्णु पूजा मुहूर्त - सुबह 07 बजकर 07 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 19 मिनट तक है। अपरा एकादशी का व्रत पारण 24 मई को सुबह 08 बजकर 05 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 10 मिनट के बीच किया जाएगा। एकादशी पूजा सामग्री- चौकी, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा, पीला कपड़ा, दीपक, आम के पत्ते, कुमकुम, फल, फूल, मिठाई, अक्षत, पंचमेवा, धूप आदि पूजन सामग्री में शामिल करें। अपरा एकादशी व्रत की पूजा विधि- अपरा एकादशी तिथि के दिन सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की मूर्ति, प्रतिमा या फोटो स्थापित करें। अपरा एकादशी पूजा के समय श्री कृष्ण के भजन, विष्णु सहस्रनाम का पाठ और पीले फूल अर्पित करें। अपरा एकादशी तिथि को प्रसाद, तुलसी जल, फल, नारियल, पंचामृत, और दीप-धूप अर्पित करें। भगवान को तिल अर्पित करने के साथ तिल का दान करें। एकादशी की शाम तुलसी के पौधे के सामने दीपक जलाएं। अपरा एकादशी व्रत का महत्व- अपार शब्द का अर्थ होता है असीमित। यानी कि अपरा एकादशी का व्रत करने वालों को असीमित सुख और धन की प्राप्ति होती है। इसी कारण इसे अपरा एकादशी कहा जाता है। इतना ही नहीं अपरा एकादशी को असीमित लाभ देने वाली एकादशी भी कहा जाता है। अपरा एकादशी समस्त पापों से मुक्ति दिलाने वाली एकादशियों में से एक मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से पापों का अंत होता है। इतना ही नहीं व्यक्ति को कई तरह के रोग, दोष और आर्थिक समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। पांडवों ने श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में इस व्रत को करके महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त की थी।

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