मन की तरंगें करती हैं प्रभावित || Vaibhav Vyas


 
मन की तरंगें करती हैं प्रभावित 

मन की तरंगें करती हैं प्रभावित मन को अंत:करण भी कहते हैं। मन के हारे-हार है, मन के जीते-जीत। मन की तरंगें जहां खुद को तो प्रभावित करती है, साथ ही सामने वाले को भी प्रभावित करती है। मन की लहर के कार्य करने का तरीका ऐसा है कि जैसे आंखों ने किसी को देखा तो मन की सहायता से आंख देखती है मन की फोटो गैलरी मे मौजूद फोटो से मिलान होता है फिर बुद्धि के पास वह फोटो जाती है वहां पर निर्णय होता है कि वह दोस्त है दुश्मन है। मान लीजिए दोस्त है तो बुद्धि ने मन को जानकारी भेजी फिर मन ने हाथ पैर आंख मुंह वगैरह को तदनुसार आचरण करने को कहा अब हमने दोनों हाथों को फैलाया दोस्त की तरफ चले आंखों में ख़ुशी की चमक के साथ हेलो कब आए तुम्हारी ही याद कर रहा था वगैरह वगैरह। अगर दुश्मन निकला तो वैसी ही भाव भंगिमा, आचरण होगा। अपरिचित निकलने पर उदासीन भाव रहेगा। आप किसी के बारे में मन में कुछ सोच रहे हैं तो उसका प्रभाव सामने वाले अप्रत्यक्ष तौर पर आ ही जाता है, समझ आए या नहीं यह दूसरी बात है। इसे एक कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं। एक राजा था। राजा का एक दोस्त था, जो चंदन का व्यापारी था। उन दोनों की दोस्ती के किस्से-कहानी के रूप में बताये जाते थे। दोनों दोस्तों का अक्सर मिलना-जुलना भी होता रहता है। ऐसे ही एक अवसर पर राजा ने अपने यहां भोज का आयोजन किया हुआ था। स्वाभाविक रूप से दोस्त को भी बुलाया गया था। दोस्त भी राजा के आयोजन में शामिल हुआ। उस दिन दोस्त कुछ निराश नजर आ रहा था, परन्तु राजा के पास आने पर दोस्त जबरदस्ती मुस्कुराने का प्रयास करता था, परन्तु हंसी स्वाभाविक नहीं होने के कारण राजा को कुछ अजीब-सा लगा, उसने दोस्त से पूछा भी, क्या कोई बात है? तुम आज कुछ उदास-उदास-से नजर आते हो। दोस्त ने कहा- नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। परन्तु राजा को संशय हो गया कि हो-न-हो कोई-न-कोई तो बात जरूर है। फिर वो दोस्त के पास गया, परन्तु इस बार तो राजा को आश्चर्य हुआ कि दोस्त के मन में कुछ गलत ही विचार चल रहे हैं, परन्तु वह समझ नहीं पाया कि वो गलत विचार आखिर है क्या? राजा अपने सबसे घनिष्ठ-बुद्धिमान मंत्री के पास गया और दोस्त के साथ हो रही मन की उथुल-पुथल का वृर्तात सुनाया। मंत्री भी हैरान हुआ, परन्तु उसने उस समय राजा को सिर्फ इतना ही कहा कि आप मुझे 15 दिनों का समय दीजिये। राजा सहमत हो गया। आयोजन समाप्ति के पश्चात मंत्री ने कुछ गुप्तचर दोस्त की निगरानी में लगा दिए और यदा-कदा किसी-न-किसी बहाने से उसके पास जाने लगा। मंत्री को कारण जानने में ज्यादा समय नहीं लगा। उसने पता लगाया कि दोस्त का व्यापार नहीं चल रहा है। दोस्त के मन में आ रहा था, कि राजा की मृत्यु हो जाए तो मेरे चंदन की लकड़ी की गोदाम खाली हो सकते हैं और मेरा व्यापार पुन: चल सकता है। मंत्री ने ये बात राजा को तो नहीं बताई, परन्तु राजा के पास आकर बोला कि आप अपने बगीचे में चंदन की लकड़ी के साजा-सामान लगवाकर उसे महका दें। राजा ने पूछा क्यों? मंत्री ने कहा इसी में आपके प्रश्न का उत्तर है। राजा ने आनन-फानन में आर्डर करवा दिए। फिर मंत्री ने कहा कि अब दोस्त को भोजन पर बुलवाएं। राजा ने वैसा ही किया। अब की बार जब दोस्त राजा से मिलने आया तो उसके मन में पछतावा था कि पहले मैंने क्यों राजा के मरने की सोची। ये दोस्त ही तो है, जिसने मेरा जीवन संभाल लिया। अब वो राजा की लम्बी उम्र की प्रार्थना करने लगा। राजा के पास जैसे ही दोस्त गया राजा के मन में उसके प्रति खुशी के भाव आ गए। दोस्त के जाने के बाद मंत्री ने राजा से कहा-आपके दोस्त का व्यापार नहीं चल रहा था, इसी वजह से उसके मन में गलत विचार आ रहे थे, कि कैसे-न-कैसे मेरा व्यापार चले। राजा मंत्री के भावों को समझ गया। तो आप दूसरों के प्रति जो भी मन में सोचेंगे, उसका प्रभाव तो अवश्य आएगा ही चाहे वह आपसे शब्दों में प्रकट न भी करे। शायद इसीलिए कहा भी गया है कि-अच्छी सोच अच्छा परिणाम, गलत सोच गलत परिणाम।

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