पौष मास में तर्पण, गंगा स्नान और दान करना शुभ
पौष मास में तर्पण, गंगा स्नान और दान करना शुभ हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह साल का दसवां महीना होता है जो मार्गशीर्ष पूर्णिमा के बाद शुरू होता है। इस महीने को धर्म, तप, उपवास और साधना का विशेष समय माना गया है। पौष मास को छोटा पितृ पक्ष भी कहा जाता है इसलिए इस माह में पितरों के लिए तर्पण, गंगा स्नान और दान करना शुभ माना जाता है। धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से पौष माह का महत्व इस प्रकार है। पौष माह में सूर्य का पूजन विशेष महत्व रखता है। इस महीने में सूर्य देवता की पूजा से जीवन में प्रकाश, ऊर्जा और सफलता प्राप्त होती है। सूर्यदेव को समर्पित रविवार के व्रत को पौष माह में अत्यधिक फलदायी माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पौष माह में सूर्य को अघ्र्य देने से पापों का नाश होता है और व्यक्ति को स्वास्थ्य, धन और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। पौष माह को तपस्या और साधना का महीना कहा गया है। ठंड के इस समय में उपवास, ध्यान और योग करने से आत्मा की शुद्धि होती है। धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि इस समय किया गया तप और ध्यान कई गुना अधिक फल प्रदान करता है। इस महीने में सुबह जल्दी उठकर स्नान और ध्यान करने का विशेष महत्व बताया गया है। पौष माह में पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म करना अत्यंत शुभ माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस महीने में किया गया तर्पण पितरों को संतुष्टि और शांति प्रदान करता है। इस महीने में अमावस्या का दिन पितरों के लिए विशेष माना गया है, जब उनके निमित्त दान-पुण्य किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पौष माह में विवाह, गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक कार्य निषिद्ध होते हैं। इस महीने को देवताओं के विश्राम का समय माना जाता है और इसलिए इसे धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा-पाठ के लिए अधिक उपयुक्त समझा गया है। पौष माह में दान-पुण्य का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार, इस महीने में जरूरतमंदों को गर्म कपड़े, अनाज और अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इसे विशेष रूप से आर्थिक और सामाजिक समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, पौष माह में भागवत कथा, रामायण पाठ और सत्संग सुनने से व्यक्ति के पाप समाप्त होते हैं और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। इस महीने में भगवान विष्णु और भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व है।

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