गया श्राद्ध से पितरों को मिलती तृप्ति || Vaibhav Vyas


 
गया श्राद्ध से पितरों को मिलती तृप्ति 

गया श्राद्ध से पितरों को मिलती तृप्ति पौराणिक धर्मग्रंथों के अनुसार सनातन धर्म में ब्रह्मयज्ञ (स्वाध्याय), पितृयज्ञ (पिंडक्रिया), देवयज्ञ (होम आदि), भूतयज्ञ (बलिवैश्वदेव) और मनुष्ययज्ञ (अतिथि सत्कार) इन्हीं पांच यज्ञों को करने का विधान है जिसके करने से प्राणियों की समस्त बाधाएं और दुखों का निवारण हो जाता है पृथ्वी पर उसके लिए कुछ करना शेष नहीं रहता। मनुष्य जन्म लेने के साथ ही जिन तीन ऋणों की चादर में लिपटा रहता है उनमें पितृऋण प्रमुख है जिससे मुक्ति पाने का सर्वोतम मार्ग गया अथवा बद्रीनाथ में श्राद्ध-पिंडदान करना है। वायु पुराण में कहा गया है कि- ब्रह्महत्या सुरापानं स्तेयं गुरु: अंगनागम:, पापं तत्संगजं सर्वं गयाश्राद्धाद्विनश्यति। अर्थात- गया में श्राद्ध करने से ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरुपत्नीगमन और उक्त संसर्ग जनित महापातक सभी महापातक नष्ट हो जाते हैं। गरुड पुराण के अनुसार मनुष्य की मुक्ति के चार मार्ग है। ब्रह्म ज्ञान, गया में श्राद्ध, कुरुक्षेत्र में निवास तथा गौशाला में मृत्यु है। जो मनुष्य अपने घर से गया के लिए प्रस्थान करते हैं। गया पहुँचने तक उनका प्रत्येक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए सीढ़ी बनता जाता है। पितृपक्ष में गया तीर्थ में जाकर हम पितरों का श्राद्ध-तर्पण करके पितृऋण से मुक्ति पा सकते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि स्वयं भगवान विष्णु पितृ देवता के रूप में गया तीर्थ में निवास करते हैं। गया तीर्थ के विषय पौराणिक कथा है कि गयासुर नाम का अत्यंत पराक्रमी असुर ने घोर प्राणियों को संतप्त करने वाली महान दारुण तपस्या की। उसकी तपस्या से संतप्त देवगण उसके वध की इच्छा से भगवान श्रीविष्णु की शरण में गए और अपनी व्यथा कही। श्री विष्णु ने देवगणों को आश्वस्त किया कि वे उस गय नामक महा पराक्रमी असुर का वध करेंगे। कालान्तर पश्चत श्री विष्णु की माया से गयासुर शयन करते हुए गदाधर रूप में  मारा गया। गयासुर का पवित्र शरीर पांच कोस और सिर एक कोस का है जिसमें ब्रह्मा, जनार्दन, शिव और प्रपितामह स्थित हैं। विष्णु ने गया की मर्यादा स्थापित करते हुए कहा कि इसका शरीर पितृ तीर्थ-पुण्य क्षेत्र होगा। यहां जो भक्ति पूर्वक यज्ञ, श्राद्ध-तर्पण पिंडदान आदि करेगा वह ब्रह्मलोकगामी होगा। सर्वप्रथम ब्रह्मा ने गया को श्रेष्ठ तीर्थ मानकर यहां यज्ञ किया। तभी से गया में श्राद्ध-पिंडदान आरम्भ हुआ यहां श्राद्ध करने के बाद कुछ भी करना शेष नहीं रहता। अत: अपने पितरों की प्रसन्नता के लिए यहां श्राद्ध और पिंडदान करने संकल्प जरूर करें। ऐसी मान्यता है कि गया में भगवान ब्रह्मा, शिव एवं विष्णु समेत धर्म राज यम निवास करते हैं। गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृदेवता के रूप में यहां सदैव विराजमान रहते हैं। भगवान राम ने माता सीता संग यहां पर अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था।

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