श्राद्ध कर्म में नकारात्मक प्रभाव से दूरी रखें || Vaibhav Vyas


 
श्राद्ध कर्म में नकारात्मक प्रभाव से दूरी रखें

श्राद्ध कर्म में नकारात्मक प्रभाव से दूरी रखें पितृपक्ष के दौरान कभी भी लोहे के बर्तनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि इन्हें नकारात्मक प्रभाव का माना गया है। इसमें खाना देने से पितृ नाराज हो सकते हैं। इससे पितृ दोष भी लग सकता है। पितरों को प्रसन्न करने के लिए हमेशा पीतल, कांसा व पत्तल की थाली व पात्र का प्रयोग करना चाहिए। पितृपक्ष में श्राद्ध क्रिया करने वाले व्यक्ति को पान, दूसरे के घर का खाना और शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए। क्योंकि ये चीजें व्यासना और अशुद्धता को दर्शाते है।। पितृ पक्ष के दौरान कुत्ते, बिल्ली, कौवा आदि पशु—पक्षियों का अपमान नहीं करना चाहिए। क्योंकि माना जाता है कि पितृ गढ़ धरती पर इन्हीं में से किसी का रूप धारण करके आते हैं। श्राद्ध पक्ष के दौरान कभी भी भिखारी व जरूरतमंद को खाली हाथ नहीं जाने देना चाहिए और न ही उनसे दुव्र्यवहार करना चाहिए। क्योंकि इससे पितर नाराज हो सकते हैं। जिसके चलते आपको पितृ दोष का प्रकोप झेलना पड़ सकता है। अगर आप कोई नई चीज खरीदने जा रहे हैं या नया काम शुरू करना चाहते है तो श्राद्ध पक्ष में इन्हें टालने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि इन दिनों को अशुभ माना जाता है। इनमें किए गए काम में सफलता नहीं मिलती है। श्राद्ध पक्ष के दौरान पुरुषों को 15 दिनों तक अपने बाल एवं दाढ़ी—मूंछें नहीं कटवानी चाहिए। क्योंकि ये शोक का समय होता है। चतुर्दशी को श्राद्ध क्रिया नहीं करनी चाहिए। इस दिन महज वो लोग तर्पण करें जिनके पूर्वजों की मृत्यु इसी तिथि में हुई हो। पितृ पक्ष के दौरान चना, मसूर, सरसों का साग, सत्तू, जीरा, मूली, काला नमक, लौकी, खीरा एवं बांसी भोजन के सेवन से भी बचें। इन्हें खाना वर्जित माना जाता है। श्राद्ध पक्ष में पितरों को भोजन दिए बिना खुद खाना न खाएं। ऐसा करना उनका अनादर करने के समान होता है। इसलिए पंद्रह दिनों तक भोजन करने से पहले अपने पूवजों के लिए भोजन का कुछ अंश जरूर निकालें और उस अंश को गाय को खिलाना चाहिए।

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