विनायक चतुर्थी व्रत कथा || Vaibhav Vyas


 
विनायक चतुर्थी व्रत कथा

विनायक चतुर्थी व्रत कथा प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन विनायक चतुर्थी व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान गणेश का विधि-विधान से पूजन किया जाता है। हिंदू धर्म में गणेश जी को प्रथम पूजनीय भगवान का दर्जा दिया गया है और इसलिए किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य से पहले गणेश जी का पूजन करना अनिवार्य माना गया है। कहते हैं कि गणेश जी के आशीर्वाद से शुरू किए गए कार्य में कोई बाधा नहीं आती और सफलता हासिल होती है. इसलिए विनायक चतुर्थी का दिन बहुत ही खास माना गया है। विनायक चतुर्थी के दिन व्रत-उपवास रख रहे हैं तो पूजा के बाद कथा अवश्य पढऩी चाहिए, क्योंकि बिना व्रत कथा के कोई व्रत सम्पूर्ण नहीं माना जाता। विनायक चतुर्थी व्रत कथा पौराणिक कथा के अनुसार राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार रहता था जो कि अपने परिवार का पेट पालने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाया करता था। लेकिन कुछ समय से किसी कारणवश उसके बर्तन सही से आग में नहीं पक रहे थे और इसकी वजह से बर्तन कच्चे रह जाते थे। अब मिट्टी के कच्चे बर्तन होने की वजह से उसकी आमदनी कम होने लगी क्योंकि उसके खरीददार कम मिलते थे। कुम्हार अपनी इस समस्या के समाधान लेने के लिए एक पुजारी के पास गया। पुजारी ने कुम्हार को उपाय बताते हुए कहा कि जब भी तुम मिट्टी के बर्तन पकाओ तो बर्तनों के साथ आंवा में एक छोटे बालक को डाल देना। पुजारी की सलाह पर कुम्हार ने अपने मिट्टी के बर्तनों को पकाने के लिए आंवा में रखा और उसके साथ एक बालक को भी रख दिया। संयोग से उस दिन विनायक चतुर्थी थी. बालक की मां काफी देर से बालक से तलाश रही थी और जब उसे अपना बालक नहीं मिला तो वह परेशान हो गई। उसने भगवान गणेश से अपने बच्चे की कुशलता के लिए प्रार्थना की। उधर कुम्हार ने जब अगले दिन सुबह अपने मिट्टी के बर्तनों को देखा कि सभी बर्तन अच्छे से पक गए थे। साथ ही आवां में रखा बच्चा भी सही—सलामत था और उसे कुछ भी नहीं हुआ था। यह देखकर कुम्हार अचंभित हुआ और डर गया, जिसके बाद वह राजा के दरबार में गया। वहां जाकर उसने सारी बात बताई। फिर राजा ने उस बालक और उसकी माता को दरबार में बुलाया। तब उस महिला ने बताया कि उसने विनायक चतुर्थी का व्रत रखा था और उसकी महिमा से बच्चा सकुशल था।

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