अपरा एकादशी व्रत कथा || Vaibhav Vyas


अपरा एकादशी व्रत कथा 

 अपरा एकादशी व्रत कथा सनातन धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। हर माह में 2 बार एकादशी व्रत किया जाता है। एक कृष्ण पक्ष में और दूसरा शुक्ल पक्ष में। ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी व्रत किया जाता है। इस बार यह एकादशी व्रत 02 जून को रखा जाएगा। इस तिथि पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-व्रत करने का विधान है। इससे जातक के सभी पापों का नाश का होता है। पूजा के दौरान एकादशी व्रत कथा का श्रवण-वाचन जरूर करना चाहिए। मान्यता है कि कथा का पाठ करने से पूजा सफल होती है और श्री हरि प्रसन्न होते हैं। अपरा एकादशी व्रत कथा पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका एक छोटा भाई था। वह अधिक क्रूर और अधर्मी था। छोटा भाई महीध्वज को मारना चाहता था। एक बार रात को उसने अपने बड़े भाई की हत्या कर शव को जंगल में जाकर पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने की वजह से महीध्वज प्रेतात्मा के रूप में उसी वृक्ष पर रहने लगा और वहां पर उत्पात करने लगा।   एक बार धौम्य ऋषि उस वृक्ष के पास से गुजर रहे थे। तब उन्होंने उस प्रेतात्मा को देखा। ऋषि ने अपने तपोबल से प्रेत के उत्पात का कारण समझा। इसके बाद उन्होंने उस आत्मा को पीपल के पेड़ से उतारा और परलोक विद्या का निर्देश दिया। उसे प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए धौम्य ऋषि ने खुद अपरा एकादशी का व्रत किया। उसके पुण्य से धर्मात्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई। इसके बाद उसने ऋषि का धन्यवाद किया और स्वर्ग को चला गया। मान्यता है कि अपरा एकादशी व्रत कथा का पाठ करने से जातक को सभी तरह के पापों से छुटकारा मिलता है। अपरा एकादशी के दिन इस कथा का श्रवण-वाचन करने से व्रत का सम्पूर्ण फल मिलने वाला रहता है। मान्यता है कि कथा के श्रवण-वाचन मात्र से ही श्री विष्णु हरि की प्रसन्नता के पात्र बन जाते हैं, जिससे सभी तरह की बाधाएं दूर होकर सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होने लगती है।

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