शनि प्रदोष व्रत कथा || Vaibhav Vyas

 शनि प्रदोष व्रत कथा 


 शनि प्रदोष व्रत कथा प्रदोष का दिन जब साप्ताहिक दिवस सोमवार को होता है उसे सोम प्रदोष कहते हैं, मंगलवार को होने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष तथा शनिवार के दिन प्रदोष को शनि प्रदोष कहते हैं। चैत्र कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत शनिवार के दिन होने से यह शनि प्रदोष व्रत है। प्रदोष व्रत करने वालों को व्रत से संबंधित का कथा का श्रवण-वाचन अवश्य करना चाहिए जिससे व्रत करने का सम्पूर्ण फल प्राप्त होने वाला रहता है। शनि प्रदोष व्रत कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक नगर सेठ थे। सेठजी के घर में हर प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं लेकिन संतान नहीं होने के कारण सेठ और सेठानी हमेशा दु:खी रहते थे। काफी सोच-विचार करके सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न बैठे थे। सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा की जाए। सेठ और सेठानी साधु के निकट बैठ गए। साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं। साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दु:ख जानता हूं। तुम शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा। साधु ने सेठ-सेठानी प्रदोष व्रत की विधि भी बताई और शंकर भगवान की निम्न वंदना बताई। हे रुद्रदेव शिव नमस्कार। शिवशंकर जगगुरु नमस्कार।। हे नीलकंठ सुर नमस्कार। शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार॥ हे उमाकांत सुधि नमस्कार। उग्रत्व रूप मन नमस्कार॥ ईशान ईश प्रभु नमस्कार। विश्वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार॥ दोनों साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए आगे चल पड़े। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद सेठ और सेठानी ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत किया जिसके प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ और खुशियों से उनका जीवन भर गया।

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