भक्ति भाव से करें मां जगदम्बा की आराधना || Vaibhav Vyas

भक्ति भाव से करें मां जगदम्बा की आराधना  


भक्ति भाव से करें मां जगदम्बा की आराधना नवरात्रि में मां जगदंबा की उपासना-आराधना भक्ति भाव से की जाए तो जीवन में सफलता के प्रतिमान स्थापित किए जा सकते हैं। मां की भक्ति जीवन में ऊर्जा का सकारात्मक संचार करती है जिससे जीवन का उद्देश्य उध्र्वगामी होकर लक्ष्यों को सिद्ध करता हुआ विघ्न-बाधाओं पर विजय प्राप्त करना है। कोई भी सफलता पाने के लिए शक्ति से युक्त होना जरूरी है। तभी शक्ति से हम प्रार्थना करते हैं कि हे मां, मुझे रूप दो, विजय दो, यश दो और मेरे शत्रुओं का नाश करो। शत्रु केवल बाह्य ही नहीं, आंतरिक शत्रुओं का नाश भी जरूरी है। इनके नाश होने पर जीवन में सहज ही विजय पताका फहराई जा सकती है। शक्ति से की गई प्रार्थना से जीवन का नवीनीकरण होने लगता है और जीवन के चारों पक्ष- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को दृढ़ता प्रदान करती है। धर्म का मार्ग 'सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' से संयुक्त है। इसी पथ पर 'श्री' अथवा सम्मान प्राप्त होता है और इसकी प्राप्ति हेतु हमारे द्वारा किए गए कार्यों को 'यश' मिलना चाहिए। 'यश' की प्राप्ति हेतु हमारे प्रयास शुभ एवं मंगलकारी हों और जहां मंगल होता है, वहां धर्म का साम्राज्य स्वत: स्थापित हो जाता है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में अर्थ क्रांति के लिए आपाधापी दिखाई देती है, किन्तु इसके लिए भी मां जगदंबा से विजय का वरदान चाहिए होता है, जिसके मिलने के उपरान्त उसी क्षण असफलता कोसों दूर खड़ी हो जाती है। लक्ष्य सिद्धि के मार्ग में सबसे बड़ा शत्रु भय है। शक्ति से प्रार्थना में हम भय का नाश करने की इच्छा प्रकट करते हैं। आज के समय में जब तक जीवन में अर्थ पक्ष सुदृढ़ नहीं होता है, अनर्थ छाए रहते हैं। पर जिस जीवन में सिर्फ अर्थ सिद्धि को बल दिया जाता है, वह शुष्क हो जाता है- रूप और रस विहीन हो जाता है। ऐसा जीवन अपूर्ण है, इसलिए शक्ति से हमारी प्रार्थना है रूपं देहि। जीवन में रूप तत्व सम्मोहन और आकर्षण में अभिव्यक्त होता है एवं जीवन को सरस करता है। शास्त्र में इसे काम पक्ष कहा गया है। जीवन का चतुर्थ पक्ष मोक्ष है, जिसे मुक्ति समझा जाता है। मुक्त तो बंधनों से होना है और बंधन जीवन में शत्रुओं द्वारा दिए जाते हैं। बंधन जीवन की पूर्णता में रोड़े अटकाते हैं और ये बंधन अधिकतर आंतरिक शत्रुओं द्वारा दिए जाते हैं। यही वह बंधन हैं, जो हमारे जीवन में आलस्य, अहंकार, हीनता एवं किंकत्र्तव्यविमूढ़ता के रूप में बार-बार आते हैं। जीवन में जब भी कठिन समस्याएं आती हैं, उस क्षण धैर्य से उसका अवलोकन करेंगे, तो कहीं-न-कहीं यही चार कारण होंगे। जिस क्षण आप शक्ति से युक्त होकर इन शत्रुओं पर प्रहार करते हैं, उस क्षण समस्याएं छोटी और आप बड़े हो जाते हैं। अष्ट रूपों में शक्ति हम सबमें बसती है- शारीरिक बल, मानसिक बल, इच्छा, साहस, ज्ञान, क्रिया, उत्साह एवं श्रद्धा। ये सभी रूप एक-दूसरे से जुड़े हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे भी हैं। तन की शक्ति बिना मानसिक दृढ़ता के फलित नहीं होगी। क्रिया हेतु इच्छा अकेले पर्याप्त नहीं है, साहस भी करना पड़ता है। ज्ञान तो तभी सार्थक है जब उस पर काम किया जाए एवं उत्साह बिना श्रद्धा का कोई महत्व नहीं रह जाता है। शक्ति के ये अष्ट रूप महिषासुरमर्दिनी की अष्ट भुजाएं हैं जो हमारे जीवन में प्रत्येक बाधा का शमन कर हमें दीनता एवं हीनता जैसे अभिशाप से मुक्त कर देती है। इसके लिए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में समन्वय स्थापित करने के लक्ष्य का संघान करने की प्रार्थना मां जगदम्बा से करनी चाहिए।

Comments