शक्ति पर्व में जगाएं भीतर की सामथ्र्य || Vaibhav Vyas

 शक्ति पर्व में जगाएं भीतर की सामथ्र्य   


शक्ति पर्व में जगाएं भीतर की सामथ्र्य नवरात्रि पर्व को शक्ति पर्व भी कहा जाता है। शक्ति भीतर के सामथ्र्य को जगाती है। शक्ति विद्रोह से दूर हटाकर व्यक्ति को विजय की ओर ले जाने वाली होती है। शक्ति पर्व जब भी चलायमान होता है, नवरात्रों की बात की जाए तो व्यक्ति मौन की ओर जाता है, व्यक्ति एकांत में साधना की ओर जाता है, ये सारी ही प्रक्रियाएं भीतर की ऊर्जा को संगठित होने को लेकर जुड़ी हुई है। यह कहा भी जाता है कि आप ऐसे कार्य की ओर जा रहे हैं जहां टीम वर्क की आवश्यकता है तो प्रत्येक व्यक्ति की ऊर्जा एक फ्लो में होनी चाहिए। किसी के साथ में भी डाउट की एप्रोच नहीं होनी चाहिए। डाउट रहेगा तो वह व्यक्ति कामकाज में गड़बड़ कर सकता है। वो ही स्थिति भीतर हुई है। मन, आत्मा व मस्तिष्क की गतिविधियां, पूर्व चलते हुए अनुभव। मान लीजिये खुद को कहते हैं सुबह पांच बजे उठना है और उठ नहीं पाते हैं। अलार्म बजती है, समय कब छह बजे की ओर, कब सात बजे की ओर चला जाता है, मालूम ही नहीं चलता। एक बार प्रश्न स्वयं से पूछा जाए क्या रात को जिस व्यक्ति ने कहा था, कि सुबह पांच बजे उठना है, जो यह निर्देश मिला वह कोई और था और सुबह जो व्यक्ति देर करता चला गया क्या वह कोई और था। आप कहेंगे कि ये बात हास्यास्पद है। दोनों ही एक व्यक्ति के द्वारा ही कही गई बात है। यह मन, मस्तिष्क और आत्मा के साथ में चलते हुए भेद। जो भीतर होकर भी अलग-अलग दिशाओं में कार्य कर रहे हैं। सुबह ऐसा क्या हुआ कि आलस्य हावी हो गया। और रात को ऐसा क्या था, हम इतने जोश के साथ में संकल्प लेने वाले थे कि ये कार्य तो करके ही रहेंगे। यह अंतर को पहचानना और इस अंतर को दूर हटाने पर कार्य करना ये स्वयं को संगठित करना है। जब भीतर की ऊर्जा संगठित होने लगती है तो व्यक्ति एक दिशा में कार्य करता है। हम किसी और व्यक्ति की सलाह सुनकर स्वयं को संगठित नहीं कर सकते, सिर्फ मोटिवेट कर सकते हैं। प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु जब कार्य सिद्धि की ओर जाना है, यहां एक बात समझिये कि यह विलक्षण बात है, कार्य सिद्धि, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जो बारह ही भावों में दशम भाव है वो आजीविका का भाव है। पिता के कर्म के साथ, पिता के साथ जुड़ाव का भाव है तो वहीं इच्छाशक्ति भी वहीं से देखी जाती है। प्रबंधन भी वहीं से देखने वाले होते हैं। दशम भाव कार्य सिद्धि को भी दर्शाता है, आजीविका में बेहतरी हासिल करना चाहते हैं तो पहले प्रबंधन की ओर जाना होगा। इच्छाशक्ति को जगाना होगा और वहीं पिता के कर्म से प्रेरणा लेते हुए अंततोगत्वा कार्य सिद्धि की ओर जाना होगा। मान लीजिये, आप किसी इंटरव्यू में गए, दस वर्ष का अनुभव है, वहां मालूम है प्रश्न नहीं पूछे जाएंगे, सिर्फ नेगोसियेशन होंगे, इंटरव्यू से ज्यादा विश्वास होगा। क्या है ये प्रक्रिया। ये प्रक्रिया है भीतर के सामथ्र्य, क्षमताओं की। तो जो ये शक्ति पर्व है भीतर के सामथ्र्य को भीतर जो भेद चल रहे हैं उसको दूर हटाने के क्रियान्वयन के साथ जुड़ा हुआ एक समय का भाव है जिसके साथ में हमको लगातार जुडऩा होता है। मौन ऐसे ही यत्न और प्रयत्न को आगे बढ़ाता है। सुबह-सुबह घर परिवार के अंदर प्रत्येक व्यक्ति कामकाज में संलग्न होता है। प्राथमिकता तय करके कामकाज की ओर जाते हैं और कहते हैं मौन, ध्यान की ओर जाऊंगा। ध्यान में जाएगा विचार और अधिक उद्विग्नता के साथ प्रवेश करने वाले होंगे। किन्तु वहीं से सामथ्र्य दस्तक देने लगेगा। वो विचार धीरे-धीरे दूर हटने की ओर जाएंगे और फिर जो एकाकार स्वरूप सामने होगा वो ध्यान की प्रक्रिया के साथ में ऊर्जा को चहुंओर फैलाने वाला होगा। किसी भी कार्य की ओर जाना है, वहां शक्ति और सामथ्र्य की आवश्यकता है। किसी कार्य की शुरुआत से पहले व्यक्ति सोचता है कि आगामी दिनों में ये कर लेंगे, वो कर लेंगे, अभी तक उसकी यात्रा यथार्थ से दूर है, किन्तु जैसे ही वो अपने सामथ्र्य और शक्ति से स्वयं को परिचय करवाता है वहीं से यथार्थ से दूर नहीं होता। भीतर जुडऩे की इस यात्रा में आध्यात्म सहयोग देता है। ध्यान की प्रक्रियाएं सहयोगी देती है। नवग्रहीय व्यवस्था के साथ में उपासना पद्धतियां सहयोग देती है। जब उनके साथ तारत्म्य स्थापित होता है तो अंततोगत्वा भीतर की शक्ति की पहचान करता है। कहा जाता है कि मन करता है वो करिये, किन्तु थोड़ा और भीतर जाने की आवश्यकता है। मन कई बार वही करता है जो आसपास नजर आता है, किन्तु भीतर की अक्षुण्ण निधि है जो ऊर्जा है वहां तक पहुंचिये, अनुशासन के साथ जो बाहर निकलकर आता है, वो ईश्वर प्रदत्त शक्ति होती है। कई बार तुलनाओं में उलझकर रह जाते हैं, इससे बचते हैं तो भीतर की गहराइयों में जुड़ता चला जाता है।

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