जीवन में एक लक्ष्य को प्रतिध्वनित करते हुए आगे बढ़ें.

 अभी कुछ दिनों पहले ही टेलीफोनिक वार्ता के माध्यम से एक व्यक्ति विशेष, जो कि ज्योतिष विज्ञान के माध्यम से ही परिचय क्षेत्र में आए, चर्चा हो रही थी और जब वह कॉल समापन की ओर जा रहा था, तो उन्होंने मुझे कहा कि मैं प्रत्येक क्षण जीवन में कुछ साल पहले तक यही गफलत पालता रहा कि मैं अपनी जिंदगी का ड्राइवर भी खुद ही हूं। जो भी लक्ष्य बना रहा हूं हासिल कर रहा हूं। उन सबकी भी जिम्मेदारी मेरे ऊपर ही है। किन्तु जहां पर भी विघ्न आ रहे हैं या मेरी गति में एक तरह से अवरोध आ रहे हैं वहां कोई और शक्ति जिम्मेदार है। किन्तु आज उम्र के छह दशक पार कर लेने के बाद, पूरा अनुभव लेने के बाद यह समझ में आ रही है बात कि शायद हमारी जो यह गाड़ी है जीवन की और हम जिसको लक्ष्य समझ कर निरन्तर भागते-दौड़ते रहते हैं वो सब कुछ कहीं और से प्रतिध्वनित हो रहे हैं। हमको तो सिर्फ एक कर्म करना होता है और भीतर से जो एक आवाज प्रत्येक क्षण गुंजायमान रहती है, उसका पालन करके जो व्यक्ति आगे बढ़ता है, वो ईश्वरीय सत्ता और उसके निर्देश के अनुरूप जीवन को चला पाता है।

 श्रीकृष्ण भी श्रीमद् भगवत गीता के ज्ञान के समय जब चर्चा करते हैं तो आप देखिये कि अर्जुन के सारथी हैं और वहीं से उन्हें पथ में जो भ्रम स्थापित हुए हैं, हटाकर आगे बढऩे के लिए निर्देशित करते हैं और कर्म के मार्ग को दिखाते हैं। तो यही स्थिति प्रत्येक क्षण हम सभी के जीवन में रहती है कि सारथी कोई और है हमको अपने कर्म की गति को लगातार हांकना है और उसके अनुसार ही जीवन में एक लक्ष्य को प्रतिध्वनित करते हुए आगे बढऩा है।

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