फाल्गुन पूर्णिमा कथा || Vaibhav Vyas

 फाल्गुन पूर्णिमा कथा


फाल्गुन पूर्णिमा कथा होलिका दहन से पहले होलिका की पूजा करने के लिए एक थाली में कुमकुम, चावल, हल्दी, मेहंदी, गुलाल, रोली, नारियल, मु_ी भर गेहू, लच्छा सूत और लौठा भरकर सजाकर ले जाएं।  इसे होलिका माता को चढ़ाएं। इसके अलावा पुष्प और माला चढ़ाएं। भगवान नरसिंह जी का ध्यान करें।   पूजा सम्पन्न होने के बाद आरती करें और होलिका के चारों ओर परिक्रमा करें। घर के छोटे बच्चों को भी परिक्रमा करवाएं, बड़ों से आशीर्वाद लें। फाल्गुन पूर्णिमा श्लोक फाल्गुने पौर्णमायान्तु होलिका पूजनं स्मृतम्। पंचयं सर्वकाष्ठानाँ पालालानान्च कारयेत्॥ श्लोक का अर्थ - नारद पुराण के इस श्लोक के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को सूर्यास्त होने पर प्रदोष काल में घर के चौड़े आँगन, किसी चौराहे या किसी निश्चित स्थान पर गोबर से लिपी-पुती भूमि पर सूखी लकड़ी, गोबर के कंडे, घास-फूस आदि इक_ा करना चाहिए और उसे जलाकर होलिका का विधिवत पूजन करना चाहिए। फाल्गुन पूर्णिमा कथा विष्णु पुराण के अनुसार बहुत समय पहले की बात है सतयुग में राक्षस राज्य हिरनकश्यप नामक राक्षस राजा हुआ करता था। जिसने आतंक और भय से  सम्पूर्ण पृथ्वी लोक का जीना मुश्किल कर दिया था। हिरनकश्यप ने घोर तपस्या कर भगवान् ब्रह्मा से वरदान लिया था, कि वह न रात में मरे ना  दिन में, ना उसे नर मार पाए न नारी, ना पशु मार पाए ना पक्षी, ना देवता मार पाए ना राक्षस ना कोई, अस्त्र ना ही कोई शस्त्र कोई भी उसकी मृत्यु न कर पाए, जब भगवान् ब्रह्मा ने उसे वरदान दे दिया, तो वह अपने आप को शक्तिशाली समझने और उसने सम्पूर्ण राज्य में घोषणा कर दी की अब भगवान् श्री विष्णु नहीं उसकी पूजा होगी। और जो भी उसकी पूजा नहीं करेगा वह मृत्यु का भागीदार बनेगा।  मृत्यु से बचने के लिये के भय से सब लोग उसकी पूजा करने लगे, लेकिन उसका खुद का पुत्र प्रहलाद भगवान् श्री विष्णु का भक्त था। उसने अपने पिता की पूजा करने से माना कर दिया। जिससे नाराज होकर हिरण्य कश्यप ने प्रह्लाद को मारने के कई सारे प्रयत्न किए, लेकिन भगवान् विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर बार बच जाते थे। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को मारने के लिए कई उपाय किए कभी प्रहलाद को मारने के लिए सापों के तयखाने में बंद किया, तो कभी हाथी के पैरो से कुचलवाने का प्रयास किया। जब वह असफल रहा, तो उसने अपने सैनिको को प्रह्लाद को पर्वत से नीचे फेकने को आदेश दिया। इसके बावजूद प्रह्लाद श्री हरी विष्णु की कृपा से बच गये। भगवान् श्री विष्णु ने स्वयं प्रहलाद को अपनी गोद में बैठाकर बचा लिया। भक्त प्रहलाद को पर्वत से धक्का देने के कारण वर्तमान में यह पर्वत को डिकोली पर्वत के नाम से जाना जाता है। कई प्रयास करने के बावजूद जब हिरण्य कश्यप प्रहलाद को मारने में असफल रहा, तो हिरण्य कश्यप ने होलिका से कहा कि बहन तुम्हें वरदान है कि आग में नहीं जल सकती, तो तुम प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ जाओ। जिससे प्रहलाद आग में जलकर मर जायेगा। फिर लकडिय़ों का एक ढेर बनाया गया, होलिका प्रहलाद को लेकर लकड़ी के ढेर पर बैठ गयी और ढेर में आग लगा दी गई। लेकिन एक बार फिर भगवान विष्णु की कृपा प्रह्लाद पर रही और प्रहलाद बच गए और हिरण्यकश्यप की बहन होलिका आग में जल गयी। तब से होलीका दहन किया जाने लगा। जब प्रह्लाद तब भी नहीं मरे और हिरण्य कश्यप ने प्रह्लाद को मारने की कोशिश तभी भगवान् श्री विष्णु ने नरसिंह का अवतार ले लिया, जो की सिंह और नर का अवतार था। और अपने नाखुनो से हिरण्य कश्यप का वध कर दिया।

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