जया एकादशी व्रत कथा || Vaibhav Vyas


जया एकादशी व्रत कथा  

जया एकादशी व्रत कथा हर साल 24 एकादशी पड़ती हैं और हर एकादशी का अपना अलग महत्व होता है। माघ के महीने में शुक्ल पक्ष में पडऩे वाली एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है। माना जाता है कि इस एकादशी पर विधि-विधान से भगवान विष्णु का पूजन किया जाए तो घर में सुख-समृद्धि आती है और पापों से मुक्ति मिल जाती है। उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए जया एकादशी का व्रत 20 फरवरी को रखा जाएगा और इसी दिन पूजा भी की जाएगी। किसी भी एकादशी के दिन व्रत रखने वालों को उससे संबंधित कथा का श्रवण-वाचन करने से व्रत का पूर्ण फल मिलने वाला रहता है। माघ महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी जया एकादशी के नाम से जानी जाती है। जया एकादशी की व्रत कथा इस प्रकार है- माना जाता है कि एक समय की बात है जब चिरकाल में स्वर्ग में स्थित नंदन वन में एक उत्सव का आयोजन किया जा रहा था। इस उत्सव में स्वर्ग के सभी देवगण, सिद्धगण और मुनि आदि उपस्थित हुए थे। इस समय नृत्य और गायन चल रहे थे जो गंधर्व और गंधर्व कन्याओं द्वारा किया जा रहा था। इसी समूह में एक नृतिका पुष्यवती की दृष्टि गंधर्व माल्यवान पर पड़ गई और वह उसके यौवन पर मोहित हो गई और अमर्यादित ढंग से नृत्य करने लगी। इस चलते माल्यवान ने बेसुरा गाना गाना शुरू कर दिया। इस घटना को देख-सुन सभी क्रोधित होने लगे। स्वर्ग नरेश इंद्र देव ने क्रोधित होकर दोनों को स्वर्गलोक से निष्कासित कर दिया। इसके साथ ही दोनों को शाप दिया कि दोनों को अधम योनि प्राप्त होगी और दोनों इसके बाद से ही हिमालय में पिशाच योनि में कष्टदारी जीवन व्यतीत करने लगे। सदियों बाद माघ मास की एकादशी अर्थात् जया एकादशी के दिन माल्यवान और पुष्यवती ने कुछ नहीं खाया और फल खाकर दिन व्यतीत किया। इसके बाद रातभर जागरण किया और श्रीहरि का स्मरण किया। इससे भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और दोनों को प्रेत योनि से मुक्त कर दिया। इसके बाद से ही भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और जीवन के कष्टों से मुक्ति पाने के लिए जया एकादशी का व्रत रखा जाता है। जया एकादशी का व्रत करने वालों को विधि-विधान से श्री विष्णु हरि की पूजा-अर्चना करने के साथ-ही-साथ इस कथा का श्रवण करने से पूर्ण फल प्राप्त होने वाला रहता है।

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