तिल चतुर्थी व्रत कथा || Vaibhav Vyas


तिल चतुर्थी व्रत कथा

 तिल चतुर्थी व्रत कथा तिल चतुर्थी को सकट चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है जो हर साल माघ महीने में आता है। इसी दिन संतान की लंबी आयु के लिए महिलाएं संकट चौथ का व्रत पूजन भी करती हैं। सकट चौथ को तिल चौथ कहने की वजह यह है कि इस व्रत में तिल और गुड़ से भगवान गणेशजी की पूजा होती है। इसके पीछे तिल चौथ की कथा है। इस दिन व्रत का संकल्प करके पूर्ण विधि-विधान से गणेश जी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। व्रती को संबंधित व्रत की कथा का श्रवण-वाचन करने से उसका पूर्ण फल मिलने वाला रहता है। कथा के अनुसार एक समय एक सेठ सेठानी संतान न होने से बहुत परेशान थे। उस समय उन्होंने माघ चौथ का व्रत करते हुए एक कुछ महिला को देखा। सेठानी ने महिलाओं से पूछा कि वह किनकी पूजा कर रही हैं। महिलाओं ने बताया कि वह चौथ माता की पूजा कर रही हैं। इनकी पूजा से संतान की आयु लंबी होती है और संतान की कामना भी पूरी होती है। सेठानी ने उसी समय मन्नत मांग ली कि गर्भवती होने पर वह सवा किलो तिलकूटा चौथ माता और गणेशजी को भोग लगाएगी। महिला गर्भवती हुई और फिर उसने मन्नत उतारने की बजाय एक और मन्नत मांग ली। संतान होने पर वह ढाई किलो तिलकूटा भगवान गणेश और चौथ माता को भोग लगाएगी। संतान भी हुआ लेकिन वह सेठानी अपनी मन्नत पूरी न कर पायी और सेठ सेठानी का बेटा विवाह योग्य हो गया। अब सेठानी ने एक और मन्नत मांग ली बेटे की शादी हुई तो पांच किलो तिलकूटा चौथ माता और गणेशजी को भोग लगाएगी। समय आने पर सेठ सेठानी के बेटे की शादी भी तय हो गई। लेकिन मन्नत पूरी न हुई। ऐसे में जब विवाह के लिए फेरे हो रहे थे तब चौथ माता ने सेठ के पुत्र को मंडप से गायब कर दिया। और गांव के एक पीपल पर बंधक बनाकर बैठा दिया। एक दिन जब सेठ के बेटी की अधव्याही दुल्हन उस पीपल के नीचे से गुजर रही है थी तो उस लड़के ने अपनी पत्नी को आवाज दी और सब बातें बता दी। तब उस कन्या की माता और सेठानी ने चौथ माता से क्षमा याचना मांगी और दोनों ने मिलकर गणेशजी और चौथ माता को तिलकूटा का भोग लगाया। इस समय से ही माघ चतुर्थी को तिलकूट चतुर्थी के नाम से जाना जाने लगा। संकष्टी और विनायकी तिल चतुर्थी- माघ मास में दो चतुर्थी आती है एक कृष्णपक्ष की और दूसरी शुक्ल पक्ष की। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायकी चतुर्थी दोनों को ही श्रद्धालु तिलकूट चतुर्थी के रूप में मनाते हैं। कहीं पर कृष्ण पक्ष में तो कहीं पर शुक्ल पक्ष में इस व्रत को करने की परंपरा है।

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