पुत्रदा एकादशी व्रत कथा || Vaibhav Vyas


पुत्रदा एकादशी व्रत कथा  

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत महत्व माना जाता है। पंचांग के अनुसार, साल में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं, इन्हीं में से एक है पौष माह के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी जिसे पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। एकादशी का व्रत करने वालों को एकादशी से संबंधित कथा का श्रवण-वाचन करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होने वाला रहता है। मान्यता है कि पौष पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से संतान प्राप्ति के योग बनते हैं और संतान पर आने वाला हर संकट दूर हो जाता है। साथ ही, पौष पुत्रदा एकादशी के दिन व्रत कथा पढऩे से संतान का भविष्य आजीवन के लिए उज्जवल एवं सुरक्षित बना रहता है।  पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा- पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में बसी भद्रावती नगरी के राजा सुकेतुमान और रानी शैव्या संतान सुख से वांछित थे और हमेशा इसी कारण दुखी रहा करते थे। राजा को न सिर्फ अपने राजपाट को आगे कौन संभालेगा इसकी चिंता थी बल्कि उसे इस बात का भी भय था कि आगे पितरों का पिंडदान कौन करेगा। संतान प्राप्ति के लिए राजा ने कई यज्ञ किये, ब्राह्मण भोज कराये, राजा-रानी ने मिलकर बहुत से पुण्य कर्म किये लेकिन इन सबके बावजूद भी उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हुई। तब राजा ने वन में जाने का निर्णय लिया और वन की ओर प्रस्थान किया। राजा जब वन में पहुंचा तब उसे वहां ऋषि-मुनियों का आश्रम नजर आया। राजा ऋषि के आश्रम में पहुंचे और उन्हीं अपने दुख के बारे में बताया, तब ऋषियों ने राजा को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने के लिए कहा। राजा ने अपनी पत्नी के साथ श्रद्धा से एकादशी का व्रत रखा। कुछ ही समय में रानी गर्भवती हो गईं और अगले वर्ष एकादशी पर राजा-रानी को पुत्र की प्राप्ति हुई। तब से यह एकादशी पुत्रदा एकादशी कहलाने लगी।

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