माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्री सूक्त का पाठ शुभ || Vaibhav Vyas


माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्री सूक्त का पाठ शुभ 

माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्री सूक्त का पाठ शुभ माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्री सूक्त पाठ करना शुभ माना गया है। हिंदू धर्म में देवी लक्ष्मी को धन, समृद्धि, आनंद और वैभव की देवी माना जाता हैं। श्री सूक्त का पाठ करने से महालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसे मां लक्ष्मी की अराधना करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है। श्री यंत्र के सामने श्री सूक्त का पाठ किया जाता है। इस मंत्र में श्री सूक्त के पंद्रह छंदों में अक्षर, शब्दांश और शब्दों के उच्चारण से अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी के ध्वनि शरीर का निर्माण किया जाता है। श्रीसूक्त ऋग्वेद के पांचवें मण्डल के अन्त में होता है। सुक्त में मंत्रों की संख्या पन्द्रह है। सोलहवें मंत्र में फलश्रुति है। बाद में ग्यारह मंत्र परिशिष्ट के रूप में उपलब्ध होते हैं। इनको लक्ष्मीसूक्त के नाम से स्मरण किया जाता है। श्री सूक्त का पाठ- ऊँ हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्णरजतस्त्रजाम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह।। तां म आ वह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्। अश्वपूर्वां रथमध्यां, हस्तिनादप्रमोदिनीम्। श्रियं देवीमुप ह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।। कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामाद्र्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्।। चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्। तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे।। आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्व:। तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मी:।। उपैतु मां दैवसख:, कीर्तिश्च मणिना सह। प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिमृद्धिं ददातु मे।। क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्। अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वां निर्णुद मे गृहात्।। गन्धद्वारां दुराधर्षां, नित्यपुष्टां करीषिणीम्। ईश्वरीं सर्वभूतानां, तामिहोप ह्वये श्रियम्।। मनस: काममाकूतिं, वाच: सत्यमशीमहि। पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्री: श्रयतां यश:।। कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम। श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्।। आप: सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे। नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले।। आद्र्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह।। आद्र्रां य करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्। सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।  तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।। य: शुचि: प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्। सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकाम: सततं जपेत्।। ।। इति।।

Comments