ऊँ के जाप से मिलती सहजता || Vaibhav Vyas


 ऊँ के जाप से मिलती सहजता 

ऊँ के जाप से मिलती सहजता, सरलता और स्वाभाविकता ऊँ यानी ओम, जिसे ओंकार या प्रणव भी कहा जाता है। लगता सिर्फ  ढाई अक्षर है, समझें तो पूरे ब्रह्मांड का सार है। ओम धार्मिक नहीं है, लेकिन यह हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म जैसे कुछ धर्मों में एक पारंपरिक प्रतीक और पवित्र ध्वनि के रूप में प्रकट होता है। ओम सबका है, यह सार्वभौमिक है, और इसमें पूरा ब्रह्मांड है। ओम को प्रथम ध्वनि माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मांड में भौतिक निर्माण के अस्तित्व में आने से पहले जो प्राकृतिक ध्वनि थी, वह थी ओम की गूँज। इसलिए ओम को ब्रह्मांड की आवाज कहा जाता है। किसी तरह प्राचीन योगियों को पता था जो आज वैज्ञानिक हमें बता रहें हैं ब्रह्मांड स्थायी नहीं है। कुछ भी हमेशा ठोस या स्थिर नहीं होता है। सब कुछ जो स्पंदित होता है, एक लयबद्ध कंपन का निर्माण करता है जिसे प्राचीन योगियों ने ओम की ध्वनि में कैद किया था। हमें अपने दैनिक जीवन में हमेशा इस ध्वनि के प्रति सचेत नहीं होते हैं, लेकिन हम ध्यान से सुने तो इसे शरद ऋतु के पत्तों में, सागर की लहरों में, या शंख के अंदर की आवाज में सुन सकते हैं। ओम का जाप हमें पूरे ब्रह्माण्ड की इस चाल से जोड़ता है और उसका हिसा बनाता है- चाहे वो अस्त होता सूर्य हो, चढ़ता चंद्रमा हो, ज्वार का प्रवाह हो, हमारे दिल की धड़कन, या हमारे शरीर के भीतर हर परमाणु की आवाजें। गायत्री मंत्र - ऊँ भूर्भुव: स्व:- माण्डूक उपनिषद् - ऊँ यह अमर शब्द ही पूरी दुनिया है बौद्ध मंत्र- ऊँ मणि पद्मे हूं गुरु ग्रंथ साहिब - एक ओंकार सतनाम योग सूत्र - तस्य वाचक: प्रणव: इन सभी मंत्र या श्लोक में समानता है ऊँ। जब हम ओम का जाप करते हैं, यह हमें हमारी सांस, हमारी जागरूकता और हमारी शारीरिक ऊर्जा के माध्यम से इस सार्वभौमिक चाल की सवारी पर ले जाता है, और हम एक गहरा संबंध समझना शुरू करते हैं जो मन और आत्मा को शांति प्रदान करता है। यह निश्चित है कि ओम का ध्यान करने से कोई भी मौजूदा मानसिक अशांति या परेशानी से राहत मिलने वाली रहती है। इसीलिए इसके जाप से मानसिक, स्वाभाविक जागरूकता और सकारात्मक ऊर्जा का स्पंदन महसूस होने लगता है जो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सहजता, सरलता और स्वाभाविकता लाने में मददगार होता है।

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