मंत्र शक्ति अलौकिक शक्ति || Vaibhav Vyas



 मंत्र शक्ति अलौकिक शक्ति 

मंत्र शक्ति अलौकिक शक्ति आज के भौतिकवादी युग में मंत्र विधा मात्र कुछ ही व्यक्तियों के प्रयोग की वस्तु बनकर रह गई है। जबकि हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों-हजार साल पूर्व ही इनका प्रयोग कर जीवन को सार्थक बनाया था। अब विज्ञान भी इस बात को मानने लगा है कि शब्दों की ध्वनि ब्रह्मांड तक पहुंचती है। मंत्रों में छुपी अलौकिक शक्ति का प्रयोग कर जीवन को सफल एवं सार्थक बनाया जा सकता है। मंत्र क्या है। इस संदर्भ में यह कहना उचित होगा कि मंत्र का वास्तविक अर्थ असीमित है। किसी देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए प्रयुक्त शब्द समूह मंत्र कहलाता है। जो शब्द जिस देवता या शक्ति को प्रकट करता है उसे उस देवता या शक्ति का मंत्र कहते हैं। मंत्र एक ऐसी गुप्त ऊर्जा है, जिसे हम जागृत कर इस अखिल ब्रह्मांड में पहले से ही उपस्थित इसी प्रकार की ऊर्जा से एकात्म कर उस ऊर्जा के लिए देवता (शक्ति) से सीधा साक्षात्कार कर सकते हैं। ऊर्जा अविनाशिता के नियमानुसार ऊर्जा कभी भी नष्ट नहीं होती है, वरन् एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती रहती है। अत: जब हम मंत्रों का उच्चारण करते हैं तो उससे उत्पन्न ध्वनि एक ऊर्जा के रूप में ब्रह्मांड में प्रेषित होकर जब उसी प्रकार की ऊर्जा से संयोग करती है तब हमें उस ऊर्जा में छुपी शक्ति का आभास होने लगता है। ज्योतिषीय संदर्भ में यह निर्विवाद सत्य है कि इस धरा पर रहने वाले सभी प्राणियों पर ग्रहों का अवश्य प्रभाव पड़ता है। चन्द्रमा मनसो जात: यानि चंद्रमा मन का कारक ग्रह है और यह पृथ्वी के सबसे नजदीक होने के कारण खगोल में अपनी स्थिति के अनुसार मानव मन को अत्यधिक प्रभावित करता है। अत: इसके अनुसार जो मन का त्राण (दु:ख) हरे उसे मंत्र कहते हैं। मंत्रों में प्रयुक्त स्वर, व्यंजन, नाद व बिंदु देवताओं या शक्ति के विभिन्न रूप एवं गुणों को प्रदर्शित करते हैं। मंत्राक्षरों, नाद, बिंदुओं में दैवीय शक्ति छुपी रहती है। मंत्र उच्चारण से ध्वनि उत्पन्न होती है, उत्पन्न ध्वनि का मंत्र के साथ विशेष प्रभाव होता है। जिस प्रकार किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु के ज्ञानर्थ कुछ संकेत प्रयुक्त किए जाते हैं, ठीक उसी प्रकार मंत्रों से संबंधित देवी-देवताओं को संकेत द्वारा संबंधित किया जाता है, इसे बीज कहते हैं। विभिन्न बीज मंत्र- ऊँ- परमपिता परमेश्वर की शक्ति का प्रतीक है। ह्रीं- माया बीज, श्रीं- लक्ष्मी बीज, क्रीं- काली बीज, ऐं- सरस्वती बीज, क्लीं- कृष्ण बीज। मंत्रों में देवी-देवताओं के नाम भी संकेत मात्र से दर्शाए जाते हैं, जैसे राम के लिए रां, हनुमानजी के लिए हं, गणेशजी के लिए गं, दुर्गाजी के लिए दुं का प्रयोग किया जाता है। इन बीजाक्षरों में जो अनुस्वार या अनुनासिक संकेत लगाए जाते हैं, उन्हें नाद कहते हैं। नाद द्वारा देवी-देवताओं की अप्रकट शक्ति को प्रकट किया जाता है। मंत्रों के सही उच्चारण और शुद्ध सात्विक भाव से करने पर उसका फल अवश्य ही मिलता है। दूसरे शब्दों में मंत्र शक्ति एक अलौकिक और अमोघ शक्ति कहलाती है, जो रामायण-महाभारत काल में भी अपनाई गई थी, जिससे व्यक्ति कई शक्तियों को अपने में समाहित कर सकता है।

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