पौष मास में सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्व || Vaibhav Vyas


पौष मास में सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्व  

पौष मास में सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्व हिन्दू पंचाग के अनुसार हर महीने की अपनी खासियत होती है और हर एक महीना किसी न किसी देवी- देवता के नाम की खास पूजा-अर्चना के लिए होता है। पौष मास में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व माना जाता है क्योंकि इस महीने में ठंड अधिक बढ़ जाती है। इस महीने सूर्य देव को सुबह-सुबह सूर्योदय के समय अघ्र्य देने के साथ ही साथ सूर्य के किसी भी मंत्र की एक माला का जाप करना विशेष फलदायी माना गया है। विक्रम संवत में पौष का महीना दसवां महीना होता है। भारतीय महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं। दरअसल जिस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के आधार पर रखा जाता है। पौष मास की पूर्णिमा को चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है इसलिए इस मास को पौष का मास कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों की मान्यता अनुसार पौष मास में सूर्य देव की उपासना उनके भग नाम से करनी चाहिये। पौष मास के भग नाम सूर्य को ईश्वर का ही स्वरूप माना गया है। पौष मास में सूर्य को अध्र्य देने व इनका उपवास रखने का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है कि इस मास प्रत्येक रविवार व्रत व उपवास रखने और तिल चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है। पौष का पूरा महीना ही धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है लेकिन कुछ प्रमुख व्रत व त्यौहार होते हैं। इस महीने दो एकादाशियां आएंगी पहली कृष्ण पक्ष को सफला एकादशी और दूसरी शुक्ल पक्ष को पुत्रदा एकादशी।

Comments