पौष मास में सूर्य उपासना शीघ्र फलदायी || Vaibhav Vyas


पौष मास में सूर्य उपासना शीघ्र फलदायी

 पौष मास में सूर्य उपासना शीघ्र फलदायी पौष मास में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व माना जाता है। क्योंकि इस महीने में ठंड अधिक बढ़ जाती है। हमारे जीवन में सूर्य का विशेष स्थान है। शास्त्रों में भी सूर्य को देवता का दर्जा दिया गया है। पौष मास में की गई सूर्य उपासना का फल दोगुना अधिक होता है। मान्यताओं के अनुसार पौष मास में सूर्य देव की उपासना उनके भग नाम से करनी चाहिए। पौष मास में भग नाम सूर्य को ईश्वर का ही स्वरूप माना गया है। पौष मास में सूर्य को अध्र्य देने व इनका उपवास रखने का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है कि इस मास प्रत्येक रविवार व्रत व उपवास रखने और तिल चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है। पौष के महीने में अधिक ठंड होने के कारण इस माह में त्वचा संबंधित परेशानियां बढऩे लगती है। ऐसे में रोजाना सूर्य देव को जल देने और उपासना से हमारा शरीर उनकी किरणें के संपर्क में आता है। जिस कारण से त्वचा संबंधित बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। सूर्य की रोशनी में बैठने से हमें विटामिन- डी मिलता है और आंखों की रोशनी को बढ़ाने में मदद भी मिलती है। सूर्य को जल का अघ्र्य देने से हमारे शरीर की हड्डियां मजबूत होती हैं, क्योंकि सुबह की सूर्य की किरणें व्यक्ति को सेहतमंद बनाने में मददगार होती हैं। वैदिक काल से ही भारत में सूर्य की पूजा का प्रचलन रहा है। पहले यह साधना मंत्रों के माध्यम से हुआ करती थी। लेकिन बाद में उनकी मूर्ति पूजा भी प्रारंभ हो गई। जिसके बाद तमाम जगह पर उनके भव्य मंदिर बनवाए गए। प्राचीन काल में बने भगवान सूर्य के अनेक मंदिर आज भी भारत में हैं। सूर्य की साधना-अराधना से जुड़े प्रमुख प्राचीन मंदिरों में कोणार्क, मार्तंड और मोढ़ेरा आदि शामिल हैं। रविवार का दिन भगवान सूर्य को समर्पित होता है। इस दिन भगवान सूर्य की साधना-आराधना करने पर शीघ्र ही उनकी कृपा प्राप्त होती है। सूर्यदेव की पूजा के लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। इसके पश्चात् उगते हुए सूर्य का दर्शन करते हुए। उन्हें ऊँ घृणि सूर्याय नम: मंत्र का जाप करते हुए जल अर्पित करें। सूर्य को दिए जाने वाले जल में लाल रोली, लाल फूल मिलाकर जल देने लाभ मिलता है। सूर्य को अघ्र्य देने के बाद लाल आसन पर बैठकर पूर्व दिशा में मुख करके सूर्य के मंत्र का कम से कम 108 बार जप करना विशेष फलदायी रहता है।

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