पूर्णिमा पर स्नान, दान व तप का विशेष महत्व || Vaibhav Vyas


पूर्णिमा पर स्नान, दान व तप का विशेष महत्व 

पूर्णिमा पर स्नान, दान व तप का विशेष महत्व मार्गशीर्ष माह हिंदू कैलेंडर का नौवां महीना होता है। ज्योतिष शास्त्र में इस महीने को बहुत ही शुभ माना गया है। यह महीना भगवान कृष्ण का प्रिय है। इस शुभ माह में लक्ष्मी माता के साथ भगवान कृष्ण की उपासना की जाती है। पौराणिक मान्याताओं के अनुसार मार्गशीर्ष माह से ही सतयुग काल की शुरुआत हुई थी। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन स्नान, दान और तप का विशेष महत्व होता है। इस दिन हरिद्वार, बनारस, मथुरा और प्रयागराज आदि जगहों पर दूर-दूर से लोग पवित्र नदियों में स्नान और तप करने के लिए आते हैं। इस बार मार्गशीर्ष पूर्णिमा 26 दिसंबर, मंगलवार के दिन है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत के नियम- मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन व्रत रखने और पूजा करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है। इसलिए सुबह उठकर भगवान का ध्यान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। स्नान के बाद सफेद कपड़े पहनकर आचमन करें। इसके बाद ऊँ नमो: नारायण का जाप करते हुए भगवान को गंध और पुष्प अर्पित करें। पूजा स्थल पर वेदी बनाकर उसमें हवन करें। इस दिन रात के समय भगवान नारायण की मूर्ति के पास ही शयन करना चाहिए। व्रत के दूसरे दिन किसी ब्राह्मण या जरुरतमंद व्यक्ति को भोजन कराकर उन्हें दान-दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्व- मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए कुछ काम करना उपयोगी होता है। इस दिन तुलसी की जड़ की मिट्टी से पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है। माना जाता है कि इस दिन किये जाने वाले दान का फल अन्य पूर्णिमा की तुलना में 32 गुना अधिक मिलता है। यही वजह है कि इस पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा करना या कथा सुनना बहुत फलदायी होता है। इस दिन गरीबों व ब्राह्मणों को भोजन और दान-दक्षिणा देने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

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