अमावस्या पर लक्ष्मी पूजा से होता पापों का नाश || Vaibhav Vyas


अमावस्या पर लक्ष्मी पूजा से होता पापों का नाश  

अमावस्या पर लक्ष्मी पूजा से होता पापों का नाश मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मार्गशीर्ष अमावस्या कहा जाता है। इसे अगहन अमावस्या और पितृ अमावस्या भी कहते है। मार्गशीर्ष महीने की अमावस्या का महत्व कार्तिक मास में पडऩे वाली अमावस्या से कम नहीं है। यह माह माता लक्ष्मी को भी बहुत प्रिय है, इसलिए इसमें लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि मार्गशीर्ष मास की अमावस्या पर लक्ष्मी पूजन और व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है। मार्गशीर्ष माह में ही भगवान कृष्ण ने गीता का दिव्य ज्ञान दिया था, इसीलिए इस माह की अमावस्या तिथि को अत्यधिक लाभकारी और पुण्य फलदायी मानी जाती है। मार्गशीर्ष अमावस्या को पितरों की पूजा करने का विशेष दिन माना गया है। ऐसी मान्यताएं है कि इस दिन पूजन और व्रत से पितर प्रसन्न होते हैं और पितृ दोष दूर होता है। इस दिन पवित्र नदियों को हवन-तर्पण के पश्चात जरूरतमंदों को दान-पुण्य करना चाहिए साथ ही श्रद्धानुसार ब्राह्मणों को भोजन करवाने के साथ उन्हें दक्षिणा स्वरूप भेंट देने से भगवत कृपा के साथ पितरों की आशीष मिलती है। मार्गशीर्ष अमावस्या का व्रत करने से कुंडली के दोष दूर होते हैं। इस अमावस्या पर गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है। कहते हैं कि इस दिन गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाने मात्र से ही इंसान के सारे पाप मिट जाते हैं। मार्गशीर्ष मास स्नान-दान, पूजा-पाठ और भगवान की भक्ति के लिए खास होता है। दरअसल इस महीने भगवान विष्णु भी चार महीने के योगनिद्रा से जाग गए होते हैं। साथ ही इन दौरान शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्यो के लिए भी शुभ मुहूर्त की शुरूआत हो गई होती है। वहीं इस पवित्र मास में भगवान श्रीकृष्ण का विशेष महत्व बताया जाता है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि वे समस्त मासों में मार्गशीर्ष मास हैं। सतयुग में देवता मार्गशीर्ष मास के प्रथम दिन को वर्ष का प्रारंभ मानते थे। इस महीने में नदियों में स्नान करना चाहिए और तुलसी और तुलसी के पौधे की जड़ों का उपयोग करना चाहिए।  इस पूरे माह में भजन, कीर्तन आदि में भक्तों को शामिल देखा जा सकता है। माना जाता है कि इस महीने की अमावस्या में पितृ पूजा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। जिन लोगों की कुण्डली में पितृ दोष हो, संतान सुख की कमी हो या राहु नवम भाव में नीच का हो उन्हें इस अमावस्या का व्रत अवश्य करना चाहिए. इस व्रत को करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

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