कार्तिक मास में किया गया दान-पुण्य यज्ञ के समान || Vaibhav Vyas


 कार्तिक मास में किया गया दान-पुण्य यज्ञ के समान  

कार्तिक मास में किया गया दान-पुण्य यज्ञ के समान कार्तिक मास को हिंदू धार्मिक मान्यताओं में सर्वोत्तम मास माना जाता है। स्कंद पुराण में कार्तिक महीने से जुड़ी भगवान कार्तिकेय की कथा बताई गई है। इसी वजह से कार्तिकेय के नाम से ही इस मास का नाम भी जुड़ा माना गया है। अन्य पुराणों में बताया गया है कि कार्तिक के समान कोई महीना नहीं है, न सतयुग के समान कोई युग और न वेद के समान कोई शास्त्र और गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है। इस मास को रोगनाशक मास होने के साथ-साथ सुबुद्धि, लक्ष्मी और मुक्ति प्रदान कराने वाला मास भी कहा जाता है। इस महीने में जहां ध्यान, स्नान, भजन-सत्संग आदि का जितना महत्व है उतना ही महत्व दान-पुण्य का भी माना गया है। दान-पुण्य में विशेषकर तुलसी, अन्न, गाय और आंवले का पौधा दान करने का विशेष महत्व होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस माह किए गए दान-पुण्य का फल यज्ञ के समान मिलने वाला माना गया है। इस माह में जो देवालय में, नदी के किनारे, सड़क पर या जहां सोते हैं वहां पर दीपदान करता है उसे सर्वतोमुखी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। यानी हर तरफ से लक्ष्मी की कृपा मिलती है। इस पूरे मास में जो मंदिर में दीप जलाता है उसे विष्णु लोक में जगह मिलती है। मान्याओं के अनुसार जो दुर्गम जगह दीप दान करता है वह कभी नरक में नहीं जाता है। इस महीने में केले के फल का तथा कंबल का दान अत्यंत श्रेष्ठ है। सुबह-सुबह जल्दी भगवान विष्णु की पूजा और रात्रि में आकाश दीप का दान करना श्रेयष्कर माना गया है। इस माह में किया गया पूजा-पाठ साधक को पापों से मुक्ति प्रदान करता है। कार्तिक महीने में किसी पवित्र नदी में ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करना अति शुभफलदायक होता है। यह स्नान अविवाहित या विवाहित महिलाएं समान रूप से कर सकती हैं। अगर आप पवित्र नदी तक जाने में असमर्थ हैं, तो घर पर स्नान के जल में गंगा जल मिलाकर भी स्नान किया जा सकता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस महीने में शिव पुत्र कार्तिकेय ने दैत्य तारकासुर का वध किया था। कथा के अनुसार तारकासुर, वज्रांग दैत्य का पुत्र और असुरों का राजा था। देवताओं को जीतने के लिए उसने शिवजी की तपस्या की। उसने असुरों पर आधिपत्य और खुद के शिवपुत्र के अलावा अन्य किसी से न मारे जा सकने का महादेव से वरदान मांगा था। देवताओं ने ब्रह्मा जी को बताया कि तारकासुर का अंत शिव पुत्र से ही होगा। देवताओं ने शिव-पार्वती का विवाह करवाया और उनसे कार्तिकेय (स्कंद) की उत्पत्ति हुई। स्कंद को देवताओं ने अपना सेनापति बनाया और लड़ाई में तारकासुर मारा हुआ। स्कंद पुराण के अनुसार शिव पुत्र कार्तिकेय का पालन कृतिकाओं ने किया इसलिए उनका कार्तिकेय नाम पड़ गया।

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