देव उठनी एकादशी से मांगलिक कार्यों की शुरुआत || Vaibhav Vyas


 देव उठनी एकादशी से मांगलिक कार्यों की शुरुआत 

देव उठनी एकादशी से मांगलिक कार्यों की शुरुआत चातुर्मास में श्री विष्णु हरि योग निद्रा में चल जाते हैं इसी वजह से शुभ कार्यों को इस दौरान नहीं किया जाता। कार्तिक शुक्ल पक्ष की देव प्रबोधनी एकादशी पर योग निद्रा से भगवान श्री हरि विष्णु जागृत होते हैं। इसी वजह से कार्तिक माह की एकादशी तिथि की विशेष महिमा मानी गई है। कार्तिक मास का यह प्रमुख पर्व है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देव प्रबोधिनी, हरि प्रबोधिनी, देव उठनी एकादशी के रूप में भी इस दिन की मान्यता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि कार्तिक पूर्णिमा तक शुद्ध देसी घी के दीपक जलाने से जीवन के सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। देव उठनी एकादशी का व्रत महिलाओं के लिए समान रूप से फलदाई माना गया है। भगवान् श्री हरी विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन क्षीर सागर में योग निद्रा हेतु प्रस्थान करते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु योग निद्रा से जागृत होते हैं। भगवान श्री विष्णु के जागृत होते ही समस्त कार्य शुभ मुहूर्त में प्रारंभ हो जाते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का व्रत रखा जाता है। इस दिन उपवास रखकर भगवान श्री हरि विष्णु की विशेष पूजा करने का विधान है। व्रत करने वाले को प्रात: काल अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा अर्चना के पश्चात एवं भगवान श्री विष्णु की पूजा अर्चना का संकल्प लेना चाहिए। श्री विष्णु सहस्त्रनाम, श्री पुरुषसूक्त, श्री विष्णु श्री विष्णु नम: का जप करना चाहिए। आज ही के दिन का मंडप बनाकर शालिग्राम जी के साथ तुलसी जी का विवाह रचाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार देव प्रबोधिनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तुलसी जी की रीति रिवाज विधान से पूजा अर्चना का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान श्री गणपति जी की भी पूजा की जाती है। दिन में फलाहार ग्रहण करना चाहिए। एकादशी तिथि भगवान श्री विष्णु की श्रद्धा भक्ति भाव के साथ शुभ फलदाई माना गया है। आज के दिन स्नान ध्यान करके उपयोगी वस्तुएं और दान देने की मान्यता है। व्रत रखकर भगवान श्री विष्णु की आराधना करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दिन तुलसी-शालीग्राम विवाह के साथ ही शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है जिसके चलते मांगलिक कार्य आदि सम्पन्न किए जाने लगते हैं। तुलसी-शालीग्राम विवाह की परम्परा के चलते एकादशी के दिन इनका विधिवत विवाह सम्पन्न कराया जाता है। कई जगहों पर मंदिरों में विधि-विधान से परम्परा को निभाया जाता है तो कहीं-कहीं घरों में भी इस परम्परा का निर्वहन किया जाता है।

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