श्राद्ध कर्म करने से मिलता पितरों का आशीर्वाद || Vaibhav Vyas


श्राद्ध कर्म करने से मिलता पितरों का आशीर्वाद 

श्राद्ध कर्म करने से मिलता पितरों का आशीर्वाद श्रद्धया इति श्राद्धम्। इतनी सरल परिभाषा और इतना ही सरल कार्य। लेकिन जान-बूझकर या अज्ञानतवश या संकोच वश कोई इस कार्य को नहीं कर पाता है तो पूरा जीवन संघर्षों से भरा नजर आने लगता है। जिसके बारे में जीवन में लगता है कि कर तो सब कुछ सही रहे हैं फिर भी समस्याएं है कि पीछा छोडऩे का नाम ही नहीं ले रही है। जीवन में श्राद्ध पक्ष को करने से पितृ प्रसन्न होंगे तो आने वाली भावी समस्याओं से भी निजात मिलती प्रतीत होगी। जो पूर्ण रूप से श्रद्धा के साथ किया जाए वही श्राद्ध कर्म है। श्राद्ध कर्म वो समय है जब हम हमारे उन पितरों को याद करते हैं जो अब इस धरती पर नहीं है, पंचतत्वों में विलीन होकर इस सर्वस्व अंबर में, इस अनन्त आकाश में विद्यमान हो चुके हैं और हमारे ऊपर पूर्ण रूप से अपने नेह की वर्षा कर रहे हैं वो समय है श्राद्ध पक्ष हम उनके द्वारा दिया गया यश भोगते हैं, नाम भोगते हैं, कीर्ति भोगते हैं, प्रत्येक वो स्थिति भोगते हैं जो आज हमारे जीवन में विद्यमान है या जिनकी वजह से आज हम इस जीव जगत में उपस्थित हैं वो है हमारे पूर्वज। ये जो सोलह दिन का समय रहता है ये हमारे पूर्वजों को याद करने का समय रहता है। जब भी हमारे पूर्वजों का देहावसान हुआ वो तिथि, उस तिथि के अनुसार हिन्दी महीने की जो तिथि होती है उसके अनुसार इन सोलह दिनों के भीतर जब भी वो तिथि उपस्थित हो रही है, आ रही है, उस समय हमें पूर्ण रूप से अच्छे से श्राद्ध कर्म नियत समय पर पूर्ण करना चाहिए। सर्वपितृ अमावस्या जिसे कुछ क्षेत्रों में महालया श्राद्ध भी कहा जाता है। महालया और सर्व पितृ अमावस्या वो श्राद्ध है हमारे जितने भी पूर्वज जो इस संसार में नहीं है उन सभी को तृप्त करने के लिए सर्व पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कर्म पूर्ण किया जाता है। इन तिथियों के अनुसार आप श्राद्ध कर्म पूर्ण करें, पूरे विधि-विधान के साथ श्राद्ध कर्म को पूर्ण करें और इसके साथ में जो फल आपकी जिन्दगी में चाहते हैं जो थोड़ी छोटी-मोटी परेशानियां और संघर्ष जो जीवन में है, वो एक तरह से दूर हटे, जीवन हमारा सुगम हो, सफल हो। सबसे पहले ये समझने की आवश्यकता है कि श्राद्ध कर्म है क्या? ये दो शब्दों से मिलकर बना है वो है श्राद्ध और कर्म। जैसे पहले भी कहा गया कि-श्रद्धया इति श्राद्धम्। जहां श्रद्धा विद्यमान है वहां पूर्वजों का श्राद्ध पूर्ण रूप से सुव्यवस्थित तरीके से होगा ही होगा इसमें शकोशुबा नहीं है। दूसरा शब्द है कर्म। यहां कर्तव्य शब्द यूज में नहीं लिया गया है। दूसरा शब्द है कर्म। कर्म का अर्थ वो है कि जो जीवन में आपको करना ही करना है एक नितांत अवसरीय क्षेत्र के रूप में जो कर्म किया जाता है उसे हम कर्म कहते हैं। एक तरह से खाना-भोजन आपके सामने रखा हुआ है, आप उसे ग्रहण करते हैं वो कर्म है। जब वो उदर के भीतर चला जाता है और जो अन्दर की प्रक्रिया संपन्न होती है उसे कहा गया है क्रिया। ये भेद है कर्म और क्रिया के रूप में। इस तरह से ये पूर्ण शब्द हो जाता है श्राद्ध-कर्म-क्रिया। यानि जो श्राद्ध कर्म किया गया उसके बेसिस पर उसके माध्यम से हमारे पूर्वजों ने क्रिया स्वरूपेन हमें आशीष दी। श्राद्ध कर्म सामने देखा, लेकिन जो आशीष मिली वो अदृश्य रूप में हमारे जीवन में विद्यमान होती चली गई जिससे देखा नहीं जा सकता, जिस क्रासमॉस के माध्यम से हमें मिलती है। श्राद्ध कर्म करने का सरल उपाय है-सबसे पहले शुद्धिकरण के साथ में भोजन बनाइये, जिसमें लहसुन-प्याज आदि नहीं हो। वो भोजन बनाने के बाद में आप अपने राइट हैंड साइड की तर्जुनी में एक जगह जो जमीन में आसन बिछाकर बैठ जाइये। भोजन सामने रख दीजिये। उसमें पांच ग्रास टालने के आवश्यकता है, जिसमें से तीन ग्रास सबसे महत्वपूर्ण है-1 कौवे के लिए, 1 श्वान के लिए और एक गाय के लिए। कौवे के लिए जो आप ग्रास टालेंगे उसे छत पर रख सकते हैं, श्वान के लिए श्वान आपको गली में मिल ही जाते हैं और यदि गाय उपलब्ध नहीं है तो गो शाला के अन्दर वो ग्रास आपको यानि एक जो भोजन का एक निश्चित आहारीय जो टुकड़ा है वो इन तीन तरीकों से विभक्त होना चाहिए और जो चौथा एक तरह से भोजना का जो हिस्सा है वो आपको ब्राह्मण को मंदिर में या जहां पर ब्राह्मण विराजित हैं, रहते हैं यदि घर में बुला पाए तो सबसे उत्तम। नहीं तो जहां पर ब्राह्मण रहते हैं वहां जाकर आप उन्हें पूरा का पूरा भोजन उन्हें जाकर समर्पित कीजिये। अब संकल्प लेने के लिए क्या किया जाए। आप राइट हैंड साइड में सबसे पहले तर्जुनी में जल लीजिए जल लेने के बाद में आप सबसे पहले अपने शहर का नाम लीजिये जहां पर आप जिस शहर में रह रहे हैं, ये हिन्दी महीना है आश्विन महीना। आप लिखते जाइये ये हिन्दी महीना है आश्विन महीना, पक्ष है कृष्ण पक्ष, जो तिथि एकम से यानि प्रतिपदा से लगाकर अमावस्या के बीच में जो तिथि आ रही है उस तिथि का नाम लेना बहुत ही अधिक आवश्यक है। वार कौनसा है इसके साथ में आप कौन से गोत्र से बिलांग करते हैं जैसे मेरा कश्यप गोत्र है, किसी का कपिंजल गोत्र है, किसी का मोदगिल गोत्र है, जो गोत्र है आपका जिस भी कास्ट से आप बिलांग करते हैं जो भी गोत्र है उसके नाम का उच्चारण लीजिये और जिस पूर्वज का आप श्राद्ध कर्म पूर्ण कर रहे हैं उनका नाम लीजिये और उसके बाद में उस जल को छोड़ दीजिये। एक तरह से आपने संकल्प ले लिया कि मैं ब्राह्मण को ये भोजन तृप्ति के अनुसार करवाने जा रहा हूं और इसके बाद में जब सर्व पितृ अमावस्या आती है यदि संभव हो तो इस दिन तर्पण के लिए किसी भी नदी या तालाब पर जाना चाहिए और ब्राह्मण के द्वारा इस कर्म को पूर्ण करवाया जाना चाहिए। जिससे क्रिया के रूप में आपको आपके पूर्वजों का पूर्ण रूप से आशीर्वाद प्राप्त हो। जीवन का संचार निरन्तर, निर्बाद्ध गति से चलता रहे और हम हमारे सारे कार्य पूर्ण करके, निवृत करके, परम धाम की तरफ एक उम्र के बाद अग्रसर हो ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए और उसके बाद में अपने कर्म में फिर से संलग्न हो जाना चाहिए। तो ये है सरल विधि जिसके द्वारा संकल्प लेकर आप पूर्ण रूप से अपने पितरों को तृप्त कर सकते हैं। इस क्रासमॉस से उन पितरों से आशीर्वाद निश्चित तौर पर प्राप्त कर सकते हैं।

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