पितृ पक्ष में प्रतिदिन तर्पण से मिलता आशीर्वाद || Vaibhav Vyas


पितृ पक्ष में प्रतिदिन तर्पण से मिलता आशीर्वाद 

पितृ पक्ष में प्रतिदिन तर्पण से मिलता आशीर्वाद शास्त्रों में बताया गया है कि पितृ पक्ष के दौरान जिस तिथि को पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है उस दिन तो तर्पण किया ही जाता है, किन्तु इसके विपरीत यदि पूरे पितृ पक्ष में किसी नदी, सरोवर में पितरों का तर्पण किया जाता है तो जाने-अनजाने हुई भूल-गलती की क्षमा मिलने के साथ ही पितरों का आशीर्वाद भी मिलता है। लोक मान्यता के अनुसार और पुराणों में भी बताया गया है कि पितृ पक्ष के दौरान परलोक गए पूर्वजों को पृथ्वी पर अपने परिवार के लोगों से मिलने का अवसर मिलता और वह पिंडदान, अन्न एवं जल ग्रहण करने की इच्छा से अपनी संतानों के पास रहते हैं। इन दिनों मिले अन्न, जल से पितरों को बल मिलता है और इसी से वह परलोक के अपने सफर को तय कर पाते हैं। इन्हीं अन्न जल की शक्ति से वह अपने परिवार के सदस्यों का कल्याण कर पाते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, पितृ पक्ष में जिनकी माता या पिता अथवा दोनों इस धरती से विदा हो चुके हैं उन्हें आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से आश्विन अमावस्या तक जल, तिल, फूल से पितरों का तर्पण करना चाहिए। जिस तिथि को माता-पिता की मृत्यु हुई हो उस दिन उनके नाम से अपनी श्रद्धा और क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। पितृपक्ष में जो ब्राह्मण तर्पण या पूजन करवाते हैं उन्हें इस कर्म के लिए यथायोग्य दान-दक्षिणा दें। पितरों को जल देने की विधि को तर्पण कहते हैं। इसके लिए हाथों में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करना चाहिए और उन्हें आमंत्रित करें:- 'ओम आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम' इस मंत्र का अर्थ है, हे पितरों, पधारिये और जलांजलि ग्रहण कीजिए। अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:। इस मंत्र को बोलकर गंगा जल या अन्य जल में दूध, तिल और जौ मिलकर 3 बार पिता को जलांजलि दें। जल देते समय ध्यान करें कि वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण करके तृप्त हों। इसके बाद पितामह को जल जल दें। अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह (पितामह का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:। इस मंत्र से पितामह को भी 3 बार जल दें। जिनकी माता इस संसार के विदा हो चुकी हैं उन्हें माता को भी जल देना चाहिए। माता को जल देने का मंत्र पिता और पितामह से अलग होता है। इन्हें जल देने का नियम भी अलग है। चूंकि माता का ऋण सबसे बड़ा माना गया है इसलिए इन्हें पिता से अधिक बार जल दिया जाता है। माता को जल देने का मंत्र:- (गोत्र का नाम लें) गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:। इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें। (गोत्र का नाम लें) गोत्रे पितामां (दादी का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:, तस्मै स्वधा नम:। इस मंत्र से जितनी बार माता को जल दिया है दादी को भी जल दें। श्राद्ध में श्रद्धा का महत्व सबसे अधिक है इसलिए जल देते समय मन में माता-पिता और पितरों के प्रति श्रद्धा भाव जरूर रखें। श्रद्धापूर्वक दिया गया अन्न जल ही पितर ग्रहण करते हैं। अगर श्रद्धा भाव ना हो तो पितर उसे ग्रहण नहीं करते हैं।

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