कष्टों से मुक्ति के लिए करें श्रीकृष्ण की भक्ति || Vaibhav Vyas


कष्टों से मुक्ति के लिए करें श्रीकृष्ण की भक्ति 

कष्टों से मुक्ति के लिए करें श्रीकृष्ण की भक्ति भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति संसार के सभी कष्टों से मुकित दिलाने वाली है, विशेषकर भगवान श्री चरण कमलों के प्रति समर्पण से सहज ही भक्ति-मुक्ति का मार्ग सुलभ होने वाला माना गया है। भगवान के तमाम स्वरूपों के साथ उनके चरण कमल की अपनी अलग महिमा है। भगवान श्री कृष्ण के चरणों में अद्र्धचंद्र, मछली, शंख, धनुष, त्रिकोण, कलश, चक्र, स्वास्तिक जैसे पवित्र चिन्हों को देखकर उनकी दिव्यता का अनुभव होता है। निश्चित रूप से इन शुभ प्रतीक किसी ईश्वर के अवतार वाले महापुरुष के चरणों ही संभव हैं। द्वापरयुग में श्री कृष्ण के जिन पावन चरणों के स्पर्श मात्र से लोगों का उद्धार हो जाता था, उनके दिव्य चरण कमल का दर्शन कलयुग में सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है। मुरली मनोहर के चरणों में व्याप्त शक्ति लोगों को सभी दु:खों व बंधनों से मुक्त करने वाली है। उनके जीवन प्रसंग में जन्मते ही कारागार के द्वार खुलने, उनके चरण स्पर्श से यमुनाजी का जल स्तर नीचे होना आदि कई ऐसी मान्यताएं हैं जिनसे उनके चरणों के प्रति विशेष अनुराग की छवि स्पष्ट झलकती है। ऐसी भी मान्यता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण दो वर्ष के थे तब एक दिन माता यशोदा ने उन्हें छकड़े के बीच सुला दिया। यह छकड़ा अदृश्य रूप में एक असुर था। इसके बाद जब बाल गोपाल भगवान श्रीकृष्ण की आंखें खुलीं और उन्होंने रोते-रोते अपने नन्हें पांवों को उछालना शुरू किया। भगवान श्रीकृष्ण के नन्हे से पांव के लगते ही विशाल छकड़ा उलट जाता है और उसकी चपेट में आते ही उस असुर को इस मायावी दुनिया से मुक्ति मिल जाती है। इसीलिए यह कहा भी गया है कि भगवान कृष्ण के चरणों में सारा संसार बसा हुआ है। मान्यता है कि जो कोई भगवान श्री कृष्ण के चरण कमलों में अपनी आस्था और विश्वास रखता है, जीवन में उसे सभी सुखों की प्राप्ति होती है और उसे कभी भी पराजय का मुख नहीं देखना पड़ता है। महाभारत काल की एक घटना के अनुसार द्यूत क्रीड़ा में हारने के बाद जब पांडव बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास करके वापस आए और उन्होंने अपना राजपाट दुर्योधन से वापस मांगा तो उसने देने से इंकार कर दिया। इसके बाद जब पांडवों को उनका हक नहीं मिला तो महाभारत के युद्ध की तैयारी होने लगी। जिसके लिए अर्जुन और दुर्योधन दोनों भगवान कृष्ण की मदद मांगने के लिए गये, लेकिन उस समय भगवान कृष्ण सोए हुए थे। ऐसे में दुर्योधन भगवान श्री कृष्ण के सिर की तरफ और अर्जुन भगवान श्री कृष्ण के चरणों की तरफ खड़े हो गए। सभी जानते हैं अर्जुन का उनकी चरण वंदना का परिणाम महाभारत युद्ध में विजयश्री का वरण बनकर सुशोभित हुई।

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