संकटों का हरण करता संकष्टी चतुर्थी का व्रत || Vaibhav Vyas


संकटों का हरण करता संकष्टी चतुर्थी का व्रत

 संकटों का हरण करता संकष्टी चतुर्थी का व्रत श्री गणेश विघ्नों का नाश करने वाले देव हैं। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी अर्थात संकष्टी चतुर्थी का व्रत श्रद्धापूर्वक इसीलिए किया जाता है ताकि उनकी कृपा से मार्ग की समस्त विपत्तियों को दूर किया जा सके। गणेश पुराण में इस व्रत की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि यह व्रत अपने नाम के अनुरूप ही संकट का हरण करने वाला है। इस चतुर्थी को माघी चतुर्थी या तिल चौथ भी कहते हैं। बारह माह के अनुक्रम में यह सबसे बड़ी चतुर्थी मानी गई है। इस दिन भगवान श्रीगणेश की आराधना सुख-सौभाग्य प्रदान करती है। इस चतुर्थी व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन की विपदाएं दूर होती हैं। इस दिन व्रत का पारणा कर विधि-विधान से पूजा-अर्चना से अटके हुए काम संपन्न होते हैं और मार्ग के समस्त कांटे हट जाते हैं। इस दिन गणेशजी की कथा सुनने अथवा पढऩे का विशेष महत्व माना गया है। व्रत करने वालों को इस दिन यह कथा अवश्य पढऩी चाहिए। तभी व्रत की संपूर्णता मानी जाती है। प्रत्येक चंद्र मास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी। संकष्टी चतुर्थी का व्रत यूं तो हर महीने में होता है लेकिन पूर्णिमांत पंचाग के अनुसार मुख्य संकष्टी चतुर्थी माघ माह की होती है और अमांत पंचाग के अनुसार पौष माह की। -इस दिन व्रत करने वाले को लाल रंग के वस्त्र पहनने चाहिए क्योंकि यह रंग भगवान गणेश को अतिप्रिय है। -भगवान गणेश का पूजन करते हुए मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए। -तत्पश्चात स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान गणेश का पूजन करना चाहिए। - फल, फूल, रौली, मौली, अक्षत, पंचामृत आदि से भगवान गणेश को स्नान करा कर विधिवत पूजा-अर्चना करनी चाहिए। - उन्हें तिल से बनी वस्तुओं, तिल-गुड़ के लड्डुओं और मोदक का भोग लगाना चाहिए। - सायं काल में व्रत करने वाले को संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा पढऩा चाहिए और अपने साथियों के बीच सुनाना भी चाहिए। फिर परिवार सहित आरती करना चाहिए। - ऊँ गणेशाय नम: अथवा ऊँ गं गणपतये नम: की एक माला, यानी 108 बार गणेश मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए। - इस माह में गरीबों को अपनी सामथ्र्य के अनुरूप दान देना चाहिए।

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