पीपल पूजा से होगी बाधाएं दूर || Vaibhav Vyas


पीपल पूजा से होगी बाधाएं दूर  

पीपल पूजा से होगी बाधाएं दूर श्रीकृष्ण का यह उद्घोष है कि वृक्षों में मैं पीपल हूं। इसी के चलते अनेक ग्रंथों में पीपल की महिमा भी बताई गई है, जिसके चलते आज भी धर्म परायण लोग प्रतिदिन पीपल सींचन और दीप प्रज्जवलन से पीपल की पूजा-अर्चना करते हैं। पीपल का नाम और उसके देवस्वरूपी होने की कथाएं वैदिक साहित्य में हैं। उपनिषदों और पुराणों में पीपल को भगवान विष्णु का साक्षात रूप माना है। श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण पीपल को अपना अवतार घोषित करते हैं। अनेक आचार्यों ने भगवान श्रीकृष्ण के इस उपदेश की व्याख्या की है, जिनका सारांश यही है कि सारी वनस्पतियों में पीपल की सर्वश्रेष्ठता निर्विवाद है। सभी वनस्पतियों में पीपल सर्वाधिक महत्वशाली है। गीताभाष्य में पीपल को सबसे अधिक पूज्य माना है। तात्पर्यचंद्रिका में स्पष्ट लिखा है कि पीपल की महिमा स्वर्ग में स्थित पारिजात आदि वृक्षों से भी ज्यादा है। अत: भगवान कृष्ण ने स्वयं को पारिजात नहीं बल्कि अश्वत्थ ही कहा। यही वजह है कि कृष्ण की कृपा प्राप्ति के लिए पीपल पूजन भी एक माध्यम है, जिसकी पूजा करके भी आत्मसंतुष्टि पाई जा सकती है। पद्मपुराण के अनुसार माता पार्वती के शाप से ग्रस्त होकर अग्नि देवता धरती पर अश्वत्थ के रूप में प्रकट हुए। धर्मशास्त्रों की मान्यतानुसार दरिद्रता से बचने के लिए शनिवार को पीपल का पूजन करना चाहिए। पूजन में मात्र जल सींचन व दीप प्रज्वलन का विधान पुराणों में है। जिन व्यक्तियों को बृहस्पति की पीड़ा हो, उन्हें गुरुवार को पीपल की समिधा से बृहस्पति के वैदिक मंत्र से 108 आहुतियों से हवन करना चाहिए। ग्रंथों में तो यहां तक वर्णित है कि प्रात: उठकर पीपल के दर्शन मात्र से आयु, धन तथा धर्म की प्राप्ति होती है। पीपल का पूजन भगवान् विष्णु के पूजन के समान फलदायी है। ग्रहों की अनुकूलता के लिए पीपल के दर्शन शुभ हैं। पीपल को कभी नहीं काटना चाहिए क्योंकि शास्त्र कहते हैं कि जो मूढ़ व्यक्ति पीपल के पेड़ को छिन्न-भिन्न करता है, उसके पाप को नष्ट करने के लिए कोई धर्म विधि या प्रायश्चित कर्म नहीं है। अश्वत्थ (पीपल) का इतना प्रभाव हमारी परंपरा पर है कि पीपल के वृक्ष को काटना पाप माना जाता है। गरुड़पुराण के अनुसार किसी मृतक के शवदाह में पीपल की लकड़ी को श्रेयस्कर माना गया है। वहीं ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति ग्रह की प्रसन्नता के लिए पीपल के वृक्ष लगाना और उन्हें सींचना विघ्नों के निवारण में प्रमुख माना गया है। घर में मांगलिक कार्य में पीपल के पत्ते बंदनवार या कलश में लगाने के लिए उपयुक्त हैं। पीपल को 5 देव वृक्षों में एक माना गया है, अत: अश्वत्थ पंच-पल्लवों में भी एक है। आयुर्वेद में पिप्पलाद्य लौह, पिप्पलासव आदि अनेक औषधियों का निर्माण पीपल से होता है।

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