सावन पूर्णिमा व्रत कथा || Vaibhav Vyas


सावन पूर्णिमा व्रत कथा 

सावन पूर्णिमा व्रत कथा हिंदू धर्म में सावन माह की पूर्णिमा का विशेष महत्व है। क्योंकि इसी दिन रक्षाबंधन का त्योहार भी मनाया जाता है। इसे श्रावणी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, तर्पण और भगवान शिव की पूजा करने का विशेष महत्व है। इस दिन रात्रि में मां लक्ष्मी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में कभी धन और वैभव की कमी नहीं होती है। इस साल सावन माह की पूर्णिमा तिथि दो दिन है। हिंदू पंचांग में सावन माह की पूर्णिमा तिथि दिनांक 30 अगस्त को सुबह 10 बजकर 58 मिनट से लेकर अगले दिन दिनांक 31 अगस्त को सुबह 07 बजकर 05 मिनट पर इसका समापन होगा। पूर्णिमा का स्नान दिनांक 31 अगस्त को किया जाएगा। इससे पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस दिन स्नान-दान का शुभ मुहूर्त सुबह 04 बजकर 28 मिनट से लेकर सुबह 05 बजकर 13 मिनट है। इस दिन सत्यनारायण पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजकर 34 मिनट से लेकर सुबह 09 बजकर 10 मिनट तक है। इस दिन चंद्रोदय का समय शाम 06 बजकर 35 मिनट पर होगा। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजाका शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 59 मिनट से लेकर रात 12 बजकर 44 मिनट पर होगा। सावन पूर्णिमा व्रत कथा प्राचीन समय में एक नगर था। जहां तुंगध्वज नाम का राजा राज्य करता था। उसे शिकार करने का बहुत शौक था। एक दिन वह जंगल में शिकार करने गया और थक गया, तो अपनी थकान को दूर करने के लिए वह एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गया। जहां उसने देखा कि कई सारे लोग साथ मिलकर सत्यनारायण भगवान की पूजा कर रहे हैं। राजा ने घमंड में भगवान को प्रणाम नहीं किया और कथा में भी नहीं गया और न ही प्रसाद लिया। फिर वह अपने नगर वापस लौट गया।  नगर आकर उसने देखा कि उसके राज्य में दूसरे राज्य के राजा ने हमला कर दिया है। राज्य का ऐसा हाल देखकर राजा तुरंत समझ गया कि सत्यनारायण भगवान और उनके प्रसाद का निरादर करने पर ऐसा मेरे साथ हुआ है। तब उसे अपनी गलती का आभास हुआ। फिर राजा दौड़कर उस जंगल में वापस गया। जहां लोग भगवान सत्यनारायण की कथा कर रहे थे। वहां राजा पहुंचकर राजा ने अपनी भूल के लिए माफी मांगी और प्रसाद भी मांगा।  उसके बाद सच्चे मन से पश्चाताप करते हुए देख राजा को भगवान सत्यनारायण ने माफ कर दिया। जिसके फलस्वरुप राजा को पहले जैसा सबकुछ वापस मिल गया। फिर राजा ने भगवान सत्यनारायण की अराधना की और उनकी कृपा से सब ठीक ढंग से चलने लगा। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति सावन पूर्णिमा की कथा पढ़ता और सुनता है। उसकी सभी मनोकामना पूरी हो जाती है और ऐसा कहा जाता है कि इस कथा को सुनने से वाजपेय यज्ञ जितनी शुभ फल की प्राप्ति होती है।

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