रुद्राभिषेक से पाएं सकारात्मकता || Vaibhav Vyas


रुद्राभिषेक से पाएं सकारात्मकता 

रुद्राभिषेक से पाएं सकारात्मकता परब्रह्म शिव के अंतस्थल में विराजमान सभी प्राणियों के सूक्ष्मतत्व और महाप्रलय के स्वामी श्रीरूद्र को प्रसन्न करने का पुनीत और श्रेष्ठ माह श्रावण है। इस माह में यदि एक भी दिन रूद्र की प्रसन्नता के लिए श्रीरुद्राभिषेक करा लिया अथवा कर लिया जाय तो उसकी सकारात्मक ऊर्जा वर्ष पर्यंत बनी रहकर घर-परिवार की हर प्रकार से रक्षा करती है। रूद्र के विषय में शास्त्र कहते हैं कि, रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीति रुद्र: अर्थात जो सभी प्रकार के रुत दुखों को विनष्ट कर देते हैं वे ही रूद्र है। ईश्वर, शिव, रूद्र, शंकर, महादेव आदि सभी ब्रह्म के ही पर्यायवाची शब्द हैं, ब्रह्म का विग्रह-साकार रूप शिव है। इन शिव की शक्ति शिवा हैं इनमें सतोगुण जगतपालक विष्णु तथा रजोगुण सृष्टिकर्ता ब्रह्मा हैं। श्वास वेद हैं। सूर्य चन्द्र नेत्र हैं। वक्षस्थल तीनों लोक और चौदह भुवन हैं। विशाल जटाओं में सभी नदियों पर्वतों और तीर्थों का वास है। जहां सृष्टि के सभी ऋषि, मुनि, योगी आदि तपस्या रत रहते हैं। शिव पूजा में अभिषेक का विशेष महत्व हैं जिसे रुद्राभिषेक कहा जाता हैं। प्रतिदिन रुद्राभिषेक नियमपूर्वक और विधि-विधान से किया जाए तो मनोकामनाएं पूर्ण होने वाली रहती है और शिव कृपा प्राप्ति होती है। सर्वप्रथम जल से शिवलिंग का स्नान कराया जाता हैं फिर क्रमश: दूध, दही, शहद, शुद्ध घी, शक्कर इन पांच अमृत जिन्हें मिलाकर पंचामृत कहा जाता हैं के द्वारा शिवलिंग को स्नान कराया जाता हैं। पुन: जल से स्नान कराकर उन्हें शुद्ध किया जाता है। इसके बाद शिवलिंग पर चन्दन का लैप लगाया जाता है। तत्पश्चात जनैऊ अर्पण किया जाता हैं अर्थात पहनाया जाता है। शिव जी पर कुमकुम एवं सिंदूर नहीं चढ़ाया जाता, उन्हें अबीर अर्पण किया जाता है। बैल पत्र, आक के फूल, धतूरे का फुल एवं फल चढ़ाया जाता हैं. शमी पत्र का विशेष महत्व होता है। धतूरे एवं बैल पत्र से भी शिव जी को प्रसन्न किया जाता हैं। शमी के पत्र को स्वर्ण के तुल्य माना जाता है। इस पुरे क्रम को ऊँ नम: शिवाय मंत्र के जाप के साथ पूरा किया जाना चाहिए। इसके पश्चात् माता गौरी का पूजन किया जाता हैं।

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