रुद्राष्टक शिव की अतुलनीय स्तुति || Vaibhav Vyas


रुद्राष्टक शिव की अतुलनीय स्तुति  

रुद्राष्टक शिव की अतुलनीय स्तुति रुद्राष्टक शिव की ऐसी स्तुति है जो अधोगामी को भी तारने में सक्षम मानी गई है। ऐसा ही एक उद्धरण रामचरित मानस में मिलता है जिसके अनुसार कागभुशुण्डि परम शिव भक्त थे। वो शिव को परमेश्वर एवं अन्य देवों से अतुल्य जानते थे। उनके गुरु श्री लोमेश शिव के साथ-साथ राम में भी असीम श्रद्धा रखते थे। इस बात के कारण कागभुशुण्डि का अपने गुरु के साथ मतभेद था। गुरु ने समझाया कि स्वयं शिव भी राम नाम से आनन्दित रहते हैं तो तू राम की महिमा को क्यों अस्वीकार करता है। ऐसे प्रसंग को शिवद्रोही मान कागभुशुण्डि अपने गुरु से रूष्ट हो गए। इसके उपरांत कागभुशुण्डि एक बार एक महायज्ञ का आयोजन कर रहे थे। उन्होंने अपने यज्ञ की सूचना अपने गुरु को नहीं दी। फिर भी सरल हृदय गुरु अपने भक्त के यज्ञ में सम्मिलित होने पहुँच गए। शिव पूजन में बैठे कागभुशुण्डि ने गुरु को आया देखा, पर अपने आसन से न उठे, न उनका कोई सत्कार ही किया। सरल हृदय गुरु ने एक बार फिर इसका बुरा नहीं माना। पर महादेव तो महादेव ही हैं। वो अनाचार क्यों सहन करने लगे? भविष्यवाणी हुई - अरे मूर्ख, अभिमानी! तेरे सत्यज्ञानी गुरु ने सरलतावश तुझ पर क्रोध नहीं किया। लेकिन मैं तुझे शाप दूंगा। क्योंकि नीति का विरोध मुझे नहीं भाता। यदि तुझे दण्ड ना मिला तो वेद मार्ग भ्रष्ट हो जाएंगे। जो गुरु से ईष्र्या करते हैं वो नर्क के भागी होते हैं। तू गुरु के सम्मुख भी अजगर की भांति ही बैठा रहा; अत: अधोगति को पाकर अजगर बन जा तथा किसी वृक्ष की कोटर में ही रह। इस प्रचंड शाप से दु:खी हो तथा अपने शिष्य के लिए क्षमा दान पाने की अपेक्षा से शिव को प्रसन्न करने हेतु गुरु ने प्रार्थना की तथा रूद्राष्टक की वाचना की तथा आशुतोष भगवान को प्रसन्न किया। कथासार में शिव अनाचारी को क्षमा नहीं करते; यद्यपि वो उनका परम भक्त ही हो। ऐसे सरल हृदय गुरु ने रुद्राष्टक की रचना की तथा महादेव को प्रसन्न किया। इसीलिए किसी भी पूजा-आराधना से पहले गुरु का स्मरण अत्यन्त आवश्यक माना गया है। इसी वजह से कहा भी गया है कि- गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरु साक्षात परम ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवै नम: अथमालिनी तंत्र में कहा गया है कि- कवचस्य ऋषिर्विष्णु रुद्राहत: विरांगछंद देवता च गुरुदेव स्वयं शिव:।। अर्थात सद्गुरु भगवान स्वयं ही शिव स्वरूप हैं।

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