मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की करें विधि-विधान से पूजा || Vaibhav Vyas


 मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की करें विधि-विधान से पूजा

प्रतिदिन भगवान की पूजा-उपासना की जाती है, लेकिन विशेष दिन और विशेष तिथि, व्रत-त्यौहार आदि समय में की गई पूजा शीघ्र फलदायी मानी गई है। वैसे ही नवरात्रि के दिनों में की गई पूजा-उपासना से मां की कृपा मिलने वाली रहती है। मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की नौ दिनों चलने वाली पूजा में पूजन सामग्री में निम्नलिखित पूजन सामग्री एकत्रित करके पूजा करना शीघ्र फलदायी माना जाता है।

इसलिए इन नौ दिनों की पूजा के दौरान एकत्र करें ये 17 पूजा सामग्री-

मां दुर्गा की प्रतिमा अथवा चित्र

लाल चुनरी, आम की पत्तियां, चावल

दुर्गा सप्तशती की किताब, लाल कलावा

गंगा जल, चंदन, नारियल, कपूर

जौ के बीज, मिट्टी का बर्तन, गुलाल

सुपारी,पान के पत्ते, लौंग, इलायची

नवरात्रि पूजा विधि- सुबह जल्दी उठें और स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें। ऊपर दी गई पूजा सामग्री को एकत्रित करें। पूजा की थाल सजाएं। मां दुर्गा की प्रतिमा को लाल रंग के वस्त्र में सजाएं। मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोएं और नवमी तक प्रति दिन पानी का छिड़काव करें। पूर्ण विधि के अनुसार शुभ मुहूर्त में कलश को स्थापित करें। इसमें पहले कलश को गंगा जल से भरें, उसके मुख पर आम की पत्तियां लगाएं और उस पर नारियल रखें। कलश को लाल कपड़े से लपेटें और कलावा के माध्यम से उसे बांधें। अब इसे मिट्टी के बर्तन के पास रख दें। फूल, कपूर, अगरबत्ती, ज्योत के साथ पंचोपचार पूजा करें। नौ दिनों तक मां दुर्गा से संबंधित मंत्र का जाप करें और माता का स्वागत कर उनसे सुख-समृद्धि की कामना करें।

अष्टमी या नवमी को दुर्गा पूजा के बाद नौ कन्याओं का पूजन करें और उन्हें तरह-तरह के व्यंजनों (पूड़ी, चना, हलवा) का भोग लगाएं। आखिरी दिन दुर्गा के पूजा के बाद घट विसर्जन करें, मां की आरती गाएं, उन्हें फूल, चावल चढ़ाएं और बेदी से कलश को उठाएं।

सनातन धर्म में कोई भी धार्मिक कार्य आरंभ करने से पूर्व कलश स्थापना करने का विधान है। पृथ्वी को कलश का रूप माना जाता है तत्पश्चात कलश में उल्लिखित देवी- देवताओं का आवाहन कर उन्हें विराजित किया जाता है। इससे कलश में सभी ग्रहों, नक्षत्रों एवं तीर्थों का निवास हो जाता है। कलश स्थापना के उपरांत कोई भी शुभ काम करें वह देवी-देवताओं के आशीर्वाद से निश्चिंत रूप से सफल होता है। प्रथम गुप्त नवरात्रि में दुर्गा पूजाँ् का आरंभ करने से पूर्व कलश स्थापना करने का विधान है। जिससे मां दुर्गा का पूजन बिना किसी विध्न के कुशलता पूर्वक संपन्न हो और मां अपनी कृपा बनाएं रखें।

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