विनायक चतुर्थी व्रत से मिलती गणेशजी की कृपा || Vaibhav Vyas


 विनायक चतुर्थी व्रत से मिलती गणेशजी की कृपा

सनातन पंचांग के अनुसार, प्रत्येक महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी मनाई जाती है। इस प्रकार गुरुवार, 22 जून को आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की विनायक चतुर्थी है। यह दिन देवों के देव महादेव के पुत्र भगवान गणेश को समर्पित होता है। सनातन धर्म में भगवान गणेश प्रथम पूजनीय हैं। अत: विनायक चतुर्थी पर्व का विशेष महत्व है। इस दिन श्रद्धा भाव से भगवान गणेश की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही भगवान गणेश के निमित्त व्रत-उपवास रखा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से साधक को सुख, वैभव, यश, कीर्ति और धन की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी संकट दूर हो जाते हैं। अत: विनायक चतुर्थी पर भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। 

शुभ मुहूर्त- दैनिक पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी 21 जून को दोपहर 03 बजकर 09 मिनट पर शुरू होकर अगले दिन संध्याकाल 05 बजकर 27 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान्य है। अत: 22 जून को विनायक चतुर्थी मनाई जाएगी। साधक सुबह 10 बजकर 29 मिनट से लेकर दोपहर 01 बजकर 17 मिनट तक भगवान गणेश की पूजा कर सकते हैं। यह समय पूजा के लिए शुभ है। इसके आलावा, चौघडिय़ा तिथि अनुरूप भी पूजा कर सकते हैं।

पूजा विधि- इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले भगवान गणेश को प्रणाम करें। इसके बाद दिन की शुरुआत करें। सभी कार्यों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान कर आचमन करें। इस समय व्रत संकल्प लें। अब पीले रंग का वस्त्र धारण कर सर्वप्रथम भगवान भास्कर को जल अर्पित करें। इसके बाद पंचोपचार कर भगवान गणेश की पूजा फल, फूल और मोदक से करें। इस समय निम्न मंत्र का उच्चारण करें-

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

पूजा के समय गणेश चालीसा, गणेश स्त्रोत, स्तुति एवं गणेश कवच का पाठ करें। अंत में आरती-अर्चना कर सुख, समृद्धि और धन वृद्धि की कामना करें। दिनभर उपवास रखें। साधक दिन में एक फल और एक बार जल ग्रहण कर सकते हैं। शाम में आरती कर फलाहार करें। अगले दिन पूजा पाठ संपन्न कर व्रत खोलें।

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