गुरु प्रदोष व्रत से मिलती दुश्मनों पर विजय || Vaibhav Vyas


 गुरु प्रदोष व्रत से मिलती दुश्मनों पर विजय

आषाढ़ का पहला प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाएगा। यह व्रत गुरुवार को पड़ रहा है, इसलिए यह गुरु प्रदोष व्रत है। इस व्रत को करने वाले को अपने दुश्मनों पर विजय प्राप्त होती है। इस दिन शिव पूजा के साथ विष्णु पूजा का भी योग है क्योंकि बृहस्पतिवार दिन श्रीहरि के व्रत और भक्ति का दिन है। प्रदोष व्रत वाले दिन सुबह से रात तक सुकर्मा योग है, इस योग में पूजा करना श्रेयष्कर माना गया है।

हर माह के दोनों पक्षों में त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। पंचांग के अनुसार, इस साल आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 15 जून गुरुवार को सुबह 08 बजकर 32 मिनट से लग रही है। इस तिथि का समापन 16 जून शुक्रवार को सुबह 08 बजकर 39 मिनट पर होगा। प्रदोष व्रत में शिव पूजा का मुहूर्त महत्वपूर्ण होता है। यह देखा जाता है कि त्रयोदशी तिथि में शाम को शिव पूजा मुहूर्त कब है। इस वजह से इस बार आषाढ़ का पहला प्रदोष व्रत 15 जून गुरुवार को रखा जाएगा। 15 जून को गुरु प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त 2 घंटे का है। आप शिव पूजा शाम 07 बजकर 20 मिनट से रात 09 बजकर 21 मिनट के बीच कर सकते हैं। उस दिन पूजा के समय अमृत-सर्वोत्तम शाम 07 बजकर 20 मिनट से रात 08 बजकर 36 मिनट तक है।

जिन लोगों को सुबह में शिव पूजा करनी है, वे लोग सुबह 05 बजकर 23 मिनट से सुबह 10 बजकर 36 मिनट के बीच कभी भी कर सकते हैं। इसमें भी लाभ-उन्नति मुहूर्त सुबह 07 बजकर 07 मिनट से सुबह 08 बजकर 52 मिनट तक है। अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त सुबह 08 बजकर 52 मिनट से सुबह 10 बजकर 36 मिनट तक है।

सुकर्मा योग में प्रदोष व्रत- आषाढ़ के पहले प्रदोष व्रत के दिन सुकर्मा योग बना है। सुकर्मा योग 15 जून की सुबह से लेकर देर रात 02 बजकर 03 मिनट तक है। यह पूजा पाठ और मांगलिक कार्यों के लिए शुभ योग है। सुबह से लेकर देर रात बन रहे सुकर्मा योग में जितना अधिक शिव मंत्रों का जाप किया जा सके, उतना ही फलदायी रहता है। शिव के सिद्ध मंत्र ऊँ नम: शिवाय का जाप किसी भी समय यानि चलते-फिरते, कार्य करते हुए भी जाप किया जा सकता है।

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