योगिनी एकादशी व्रत कथा || Vaibhav Vyas


 योगिनी एकादशी व्रत कथा

आषाढ़ कृष्ण पक्ष में पडऩे वाली एकादशी तिथि को योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत तरीके से पूजा की जाती है। इस बार की एकादशी काफी खास है क्योंकि इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। मान्यता है कि इस एकादशी के दिन पूजा करने के साथ व्रत रखने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसके साथ ही भगवान विष्णु की कृपा हमेशा बनी रहती हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के साथ-साथ योगिनी एकादशी व्रत कथा का श्रवण-वाचन करना चाहिए,जिससे व्रत की पूर्णता का फल प्राप्त होने वाला रहता है।

योगिनी एकादशी की व्रत कथा-

योगिनी एकादशी व्रत की कथा को युधिष्ठिर के कहने पर स्वयं श्री कृष्ण ने कही थी। भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि हे राजन्! सुनो मैं तुमसे पुराणों में वर्णित योगिनी एकादशी की कथा कहता हूं।

एक बार की बात है जब स्वर्ग लोक में कुबेर नाम का एक राजा रहता था, वो शिव भक्त था। प्रतिदिन नियमित रूप से शिव आराधना करता था। उसका हेम नाम का एक माली था, जो हर दिन पूजा के लिए फूल लाता था। माली की विशालाक्षी नाम की बहुत सुंदर पत्नी थी, जिसके सौंदर्य पर माली आसक्त रहता था। एक दिन प्रात: काल हेम माली मानसरोवर से फूल तो तोड़ लाया परंतु घर पर अपनी रूपवती स्त्री से कामासक्त होकर दोपहर तक राजा के यहां नहीं पहुंचा। राजा कुबेर को पूजा के लिए विलंब हो गया। विलंब का कारण जानकर कुबेर बहुत क्रोधित हुआ और उसने माली को श्राप दे दिया। कुबेर ने कहा कि तुमने ईश्वर भक्ति से ज्यादा कामासक्ति को प्राथमिकता दी है, तुम्हारा स्वर्ग से पतन होगा और तुम धरती पर स्त्री वियोग और कुष्ठ रोग का कष्ट भोगोगे।

कुबेर के श्राप के फलित होते ही माली हेम धरती पर आ गिरा, उसे कुष्ठ रोग हो गया और उसकी स्त्री भी चली गयी। हेम वर्षों तक पृथ्वी पर अनेकों कष्ट सहता रहा। एक दिन उसे मार्कण्डेय ऋषि के दर्शन हुए। उसने अपनी सारी व्यथा उन्हें सुनाई और अपने प्रायश्चित का मार्ग पूछा। मार्कण्डेय ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी के व्रत के महात्म्य के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु को समर्पित ये योगिनी एकादशी का व्रत तुम्हारे समस्त पापों को समाप्त कर देगा और तुम पुन: भगवत् कृपा से स्वर्ग लोक को प्राप्त करोगे। हेम, माली ने पूरी श्रद्धा के साथ योगिनी एकादशी का व्रत रखा। भगवान विष्णु ने उसके समस्त पापों को क्षमा करके उसे पुन: स्वर्ग लोक में स्थान प्रदान किया।

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