अपरा एकादशी व्रत, कथा और महत्व || Vaibhav Vyas


 अपरा एकादशी व्रत, कथा और महत्व

वैदिक कैलेंडर के अनुसार एकादशी चंद्र चरणों की ग्यारहवी तिथि को पड़ती है। चंद्रमा के चमकने वाले चरण को शुक्ल पक्ष कहा जाता है, जबकि अंधेरा या घटती अवस्था को कृष्ण पक्ष कहा जाता है। इसके बारे में विवरण चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में बताया गया है। साल में 24 एकादशी होती हैं। उन्हीं में से एक है अपरा एकादशी। इसे सबसे अधिक फलदायी एकादशी में से एक माना जाता है। एकादशी भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए मनाई जाती है।

अपरा एकादशी ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष के दौरान पडऩे वाली एकादशी है। अपरा एकादशी के कई नाम हैं जैसे जयेष्ठ कृष्ण एकादशी, भद्रकाली एकादशी या जलक्रीड़ा एकादशी। पुराणों में इस एकादशी का बहुत ही धार्मिक महत्व है। एकादशी व्रत जीवन से पापों को दूर करने, अच्छे कर्मों का आशीर्वाद पाने के लिए किया जाता है और इस दिन पूरे अनुष्ठान और व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति को समाज में प्रसिद्धि और सम्मान की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत मोक्ष का मार्ग है, और इससे व्यक्ति को अपने जीवन के सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है।

अपरा एकादशी व्रत कथा और महत्व

अपरा एकादशी कथा को लेकर कई किंदवंतियां है। इसमें एक सबसे महत्वपूर्ण है। इस कथा के अनुसार महिध्वज नाम का एक शासक था, जो बहुत ही दयालु था। लेकिन, उसका छोटा भाई वज्रध्वज उससे एकदम विपरीत स्वभाव का था। उसने अपने मन में अपने भाई के खिलाफ द्वेष भर रखा था। उसे अपने भाई का व्यवहार पसंद नहीं आया। वह हमेशा ही इस फिराक में रहता था कि किस तरह से राज्य को हथिया लिया जाए। वह हमेशा अपने भाई को मारने और अपनी शक्ति और राज्य प्राप्त करने के अवसर की तलाश में रहता था। एक दिन मौका पाकर उसने अपने भाई को मार दिया और एक पीपल के पेड़ के नीचे दफना दिया।

अकाल मृत्यु के कारण राजा की आत्मा भटकने लगी, वह उस पेड़ के पास से गुजरने वाले हर राहगीर को परेशान करने लगी। संयोगवश एक दिन एक ऋषि उसी रास्ते से गुजर रहे थे। जब उनका सामना उस आत्मा से हुआ, तो उन्होंने उस आत्मा से अब तक मोक्ष प्राप्ति न होने का कारण पूछा। राजा की आत्मा ने अपने साथ हुए विश्वासघात की सारी कहानी ऋषि को बता दी। इसके बाद उस ऋषि ने अपनी शक्ति से, आत्मा को मुक्त कर दिया और उसे जीवन के बारे में सिखाया।

राजा की मुक्ति के लिए, ऋषि ने अपरा एकादशी का व्रत रखा और उसे प्रेत योनि से छुटकारा पाने में मदद की। द्वादशी के दिन व्रत करने से प्राप्त पुण्य उन्होंने राजा की आत्मा को अर्पित कर दिया। अपरा एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो गई और प्रेत योनि से छुटकारा मिल गया।

अपरा एकदाशी को लेकर एक कहानी महाभारत से भी ताल्लुक रखती है। हिंदू मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी का महत्व भगवान कृष्ण ने राजा युधिष्ठिर को बताया था। जो व्यक्ति इस एकादशी व्रत और अनुष्ठान को करता है, वह अतीत और वर्तमान के पापों से छुटकारा पाता है और सकारात्मकता के मार्ग पर आगे बढ़ता है। इस एकादशी को करने का एक मुख्य कारण समाज में अपार धन, प्रसिद्धि और सम्मान प्राप्त करना है। यह भी माना जाता है कि व्यक्ति इस एकादशी के अनुष्ठान को अत्यंत भक्ति के साथ करके पुनर्जन्म और मृत्यु के इस चक्र से बाहर निकल सकता है और मोक्ष के अंतिम द्वार तक पहुंच सकता है।

कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस व्रत को करते हैं, उन्हें कार्तिक के महीने में गंगा में पवित्र डुबकी लगाने के बराबर लाभ मिलता है। अपरा एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा करने से जो पुण्य कर्म और कर्म होते हैं, वे एक हजार गायों का दान और यज्ञ करने के बराबर होते हैं।

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