वरुथिनी एकादशी व्रत कथा || Vaibhav Vyas


 वरुथिनी एकादशी व्रत कथा

वरुथिनी एकादशी का महत्व खुद भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। इस व्रत को रखने से व्यक्ति को कई वर्षों की तपस्या का पुण्य प्राप्त होता है। जाने-अनजाने हुए पाप कट जाते हैं और व्यक्ति का दुख दूर होता है। ऐसा व्यक्ति मृत्यु के बाद बैकुंठ को प्राप्त होता है। लेकिन व्रत के पुण्य को प्राप्त करने के लिए विधिवत व्रत रखना चाहिए और व्रत से संबंधित कथा का श्रवण-वाचन करना चाहिए।

वरुथिनी एकादशी व्रत विधि- एकादशी व्रत के नियम एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद से शुरू हो जाते हैं। ऐसे में सूर्यास्त होने से पहले ही भोजन आदि करें। इसके बाद प्याज-लहसुन आदि से बना या कुछ भी गरिष्ठ भोजन न खाएं। अगले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद भगवान के सामने व्रत का संकल्प लें। विधिवत भगवान की पूजा करें करें और कथा पढ़ें। दिन भर हरि का नाम जपें। बुराई-भलाई, किसी की चुगली वगैरह न करें। झूठ न बोलें। व्रत में फलाहार लेना है या नहीं, ये आपकी सामथ्र्य और इच्छा शक्ति पर निर्भर है। अगर सेंधानमक का सेवन कर रहे हैं तो सूर्यास्त से पहले करें। रात में जब तक संभव हो जागरण करके भगवान का नाम जपें, भजन कीर्तन वगैरह करें। अगले दिन स्नान आदि के बाद किसी जरूरतमंद को भोजन कराएं. दक्षिणा आदि दान दें। इसके बाद व्रत का पारण करें।

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा- पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर राजा मांधाता राज्य करते थे। राजा बहुत ही दानवीर और धर्मात्मा थे। एक बार राजा जंगल के पास तपस्या कर रहे थे, तभी वहां एक भालू आया और उनके पैर को चबाने लगा। राजा अपने तप में लीन थे। इस बीच भालू उन्हें जंगल में घसीटकर ले गया और राजा को बुरी तरह जख्मी कर दिया। तब राजा ने भगवान को याद किया और प्राणों की रक्षा के लिए प्रार्थना की।

भक्त की पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला। भालू के हमले से राजा मंधाता अपंग हो गए थे। उन्हें बहुत शारीरिक पीड़ा थी। इस पीड़ा से मुक्त होने का उपाय जब उन्होंने पूछा तो भगवान विष्णु ने उन्हें कहा कि तुम्हारे पिछले जन्म का कर्मफल है। तब भगवान विष्णु ने राजा से वैशाख की वरुथिनी एकादशी का व्रत और पूजन करने को कहा। राजा मांधाता ने विष्णु जी के बताए अनुसार वरुथिनी एकादशी पर श्रीहरि के वराह रूप की विधि-विधान से पूजा की। व्रत के प्रभाव से वो शारीरिक पीड़ा से मुक्त हो गए और मृत्यु के बाद उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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