वैशाख महात्म्य कथा || Vaibhav Vyas


 वैशाख महात्म्य कथा

हिन्दू कैलेंडर के 12 मास में से 4 मास (वैसाख, भाद्रपद, कार्तिक, माघ) को बड़े मास के रूप में जाना जाता है। वैसाख मास साल का पहला बड़ा मास होता है और इसलिए भगवान् श्रीहरि विष्णु का अत्यधिक प्रिय मास भी होता है। स्कंदपुराण में वैशाख मास को सभी मासों में उत्तम बताया गया है। स्कंदपुराण में इस बात का भी उल्लेख है कि महीरथ नामक राजा ने केवल वैशाख स्नान से ही वैकुण्ठधाम प्राप्त किया था।

इस मास में व्रती को सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए और उसके बाद सूर्योदय के समय अघ्र्य देते समय यह मंत्र बोलना चाहिए- 

वैशाखे मेषगे भानौ प्रात: स्नानपरायण: । 

अध्र्यं तेहं प्रदास्यामि गृहाण मधुसूदन ।।

इस मास में वैशाख व्रत महात्म्य की कथा सुननी चाहिए तथा ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करना चाहिए। वैशाख मास में जलदान का विशेष महत्व है। इस महीने में प्याऊ और कुओं का निर्माण शुभ माना गया है। वैशाख मास के देवता भगवन मधुसूदन अर्थात भगवान विष्णु हैं।

वैशाख मास माहात्म्य कथा-

एक बार राजाओं और ऋषियों की सभा में महर्षि नारद ने बताया कि वैशाख मास सभी मासों में श्रेष्ठ है। यह सर्वाधिक शुभ और पुण्य फलदायी है और विष्णु भगवान् का प्रिय मास है। महात्मा नारद के वचन सुनकर राजर्षि अम्बरीष ने विस्मित होकर उनसे पूछा-महामुने! आप मार्गशीर्ष आदि पवित्र महीनों को छोड़कर वैशाख की ही इतनी प्रशंसा क्यों करते हो? उसी को सब मासों में श्रेष्ठ क्यों बतलाते हो? और यदि माधवमास सबसे श्रेष्ठ और भगवान् लक्ष्मीपति को अधिक प्रिय है तो उस समय स्नान करने की क्या विधि है? वैशाख मास में किस वस्तु दान, कौन-सी तपस्या तथा किस देवता का पूजन करना चाहिए? कृपानिधे! उस समय किये जाने वाले पुण्यकर्म का आप मुझे उपदेश दीजिए। सद्गुरु के मुख से उपदेश की प्राप्ति दुर्लभ होती है। उत्तम देश और काल का मिलना भी कठिन होता है। राज्य-प्राप्ति आदि दूसरे कोई भी भाव हमारे ह्रदय को इतनी शीतलता नहीं प्रदान करते, जितनी कि आपका यह समागम।

नारद जी ने कहा-राजन ! सुनो, मैं संसार के हित के लिए तुमसे माधवमास की विधि का वर्णन करता हूँ। जैसा कि पूर्वकाल में ब्रह्मा जी ने बतलाया था। पहले तो जीव का भारतवर्ष में जन्म होना ही दुर्लभ है, उससे भी अधिक दुर्लभ है- मनुष्य की योनि में जन्म। मनुष्य होने पर भी अपने-अपने धर्म के पालन में प्रवृत्ति होनी तो और भी कठिन है। उससे भी अत्यंत दुर्लभ है- भगवान् वासुदेव में भक्ति और उसके होने पर भी माधवमास में स्नान आदि का सुयोग मिलना तो और भी कठिन है। माधव (वैशाख) मास  पाकर जो विधिपूर्वक स्नान, दान तथा जप आदि का अनुष्ठान करते हैं, वे ही मनुष्य धन्य और कृतकृत्य हैं।

वैशाख मास के जो एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक अंतिम पांच दिन हैं, वे समूचे महीने के समान महत्व रखते हैं। राजेंद्र! जिन लोगों ने वैशाख मास में मधु दैत्य को मारने वाले भगवान् लक्ष्मीपति का पूजन कर लिए, उन्होंने अपने जीवन का फल पा लिया। महात्मा नारायण के अनुग्रह से ही मनोवांछित सिद्धियाँ मिलती हैं। जो कार्तिक में, माघ में तथा माधव को प्रिय लगने वाले वैशाख मास में स्नान करके लक्ष्मीपति दामोदर की भक्तिपूर्वक पूजा करता है और अपनी शक्ति के अनुसार दान देता है, वह मनुष्य इस लोक का सुख भोगकर अंत में श्रीहरि के पद को प्राप्त होता है।

हे राजन! जैसे सूर्योदय होने पर अन्धकार नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार वैशाख मास में प्रात: स्नान करने से अनेक जन्मों की उपार्जित पाप राशि नष्ट हो जाती है। यह बात ब्रह्माजी ने मुझे बताई थी।

भगवान श्रीविष्णु ने माधव मास की महिमा का विशेष प्रचार किया है। अत: इस महीने के आने पर मनुष्यों को पवित्र करने वाले पुण्य जल से परिपूर्ण गंगा तीर्थ, नर्मदा तीर्थ, यमुना तीर्थ अथवा सरस्वती तीर्थ में सूर्योदय से पहले स्नान करके भगवान् मुकुंद की पूजा करनी चाहिए। इससे तपस्या का फल भोगने के पश्चात अक्षय स्वर्ग की प्राप्ति होती है। राजन! देवाधिदेव लक्ष्मीपति पापों का नाश करने वाले हैं, उन्हें नमस्कार करके चैत्र की पूर्णिमा को इस व्रत का आरम्भ करना चाहिए। व्रत लेने वाला पुरुष यमनियमों  का पालन करे, शक्ति के अनुसार दान दे, हविष्यान्न भोजन करे,भूमि पर सोये, ब्रह्मचर्य व्रत में दृढ़तापूर्वक स्थित रहे तथा हृदय में भगवान् श्रीनारायण का ध्यान करते रहे। इस प्रकार नियम में रहकर जब वैशाख की पूर्णिमा आए, उस दिन मधु तथा तिल का दान करे, श्रेष्ठ ब्राह्मणों को भक्तिपूर्वक भोजन कराए, तथा वैशाख स्नान में व्रत में जो कुछ त्रुटि हुई हो उसकी पूर्णता के लिए ब्राह्मणों से प्राथना करे। इस तरह उपर्युक्त नियमों के पालनपूर्वक बारह वर्षों तक वैशाख स्नान करके अंत में मधुसूदन की प्रसन्नता के लिए अपनी शक्ति के अनुसार व्रत का उद्ययापन करें। 

अम्बरीष! पूर्वकाल में ब्रह्मा जी के मुख से मैंने जो कुछ सुना था, वह सब वैशाख मॉस का माहात्म्य तुम्हें बता दिया।  अम्बरीष ने पूछा- मुने! स्नान में परिश्रम तो बहुत थोड़ा है, फिर भी उससे अत्यंत दुर्लभ फल की प्राप्ति होती है-मुझे इस पर विश्वास क्यों नहीं होता? मुझे मोह क्यों हो रहा है?

नारद जी ने कहा- राजन! तुम्हारा संदेह ठीक है। थोड़े से परिश्रम के द्वारा महान फल की प्राप्ति असंभव सी बात है फिर भी इस पर विश्वास करो, क्यूंकि यह ब्रह्मा जी की बताई हुई बात है। धर्म की गति सूक्ष्म होती है, उसे समझने में बड़े-बड़े पुरुषों को भी कठिनाई होती है। श्रीहरि की शक्ति अचिन्त्य है, उनकी कृति में विद्वानों को भी मोह हो जाता है। विश्वामित्र आदि क्षत्रीय थे किन्तु धर्म का अधिक अनुष्ठान करने के कारण वे ब्राह्मणत्वा को प्राप्त हो गए, अत: धर्म की गति अत्यंत सूक्ष्म है।

जीव विचित्र है, जीवों की भावनाएं विचित्र हैं, कर्म विचित्र है तथा कर्मों की शक्तियां भी विचित्र हैं। शास्त्र में जिसका महान फल बताया गया हो, वही कर्म महान है फिर वह अल्प परिश्रम साध्य हो या अधिक परिश्रम साध्य। छोटी से वस्तु से भी बड़ी से बड़ी वस्तु का नाश होता देखा जाता है। जिसके हृदय में भगवान् श्रीविष्णु की भक्ति है वह विद्वान् पुरुष यदि थोड़ा सा भी पुण्य कार्य करता है तो वह अक्षय फल देने वाला होता है। अत: माधव मास में माधव की भक्तिपूर्वक आराधना करके मनुष्य अपनी मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है -इस विषय में संदेह नहीं करना चाहिए।

राजन! भाव तथा भक्ति दोनों की अधिकता से फल में अधिकता होती है। धर्म की गति सूक्ष्म है,वह कई प्रकार से जानी जाती है। अत: अपने हृदय कमल में शुद्ध भाव की स्थापना करके वैशाख मॉस में प्रात: स्नान करने वाला जो विशुद्ध:चित पुरुष भक्तिपूर्वक भगवान् लक्ष्मीपति की पूजा करता है, उसके पुण्य का वर्णन करने की शक्ति मुझमे नहीं है। अत: भूपाल! तुम वैशाख मॉस के फल के विषय में विश्वास करो।

जैसे हरिनाम के भय से राशि-राशि पाप नष्ट हो जाते हैं, उसी प्रकार सूर्य के मेष राशि में स्थित होने के समय प्रात: स्नान करने से तथा तीर्थ में भगवान् की स्तुति करने से भी समस्त पापों का नाश हो जाता है। अम्बरीष! इस प्रकार मैंने थोड़े में यह वैशाख स्नान का सारा महात्म्य सुना दिया, अब और क्या सुनना चाहते हो। अम्बरीष ने सर झुकाकर प्रणाम किया और बोला- हे मुने! आज मैं धन्य हो गया।

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