चौथे दिन कुष्मांडा माता की पूजा से होती मनोकामनाएं पूर्ण || Vaibhav Vyas


 चौथे दिन कुष्मांडा माता की पूजा से होती मनोकामनाएं पूर्ण

नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा को समर्पित है। यह मां दुर्गा के उस रूप का प्रतीक है, जो सभी सुखों का प्रमुख स्रोत है। कुष्मांडा माता के नाम यानी कु का अर्थ है 'कुछÓ, ऊष्मा का अर्थ है 'तापÓ और अंडा का अर्थ है ब्रह्मांड या सृष्टि। यही कारण है कि देवी को ब्रह्मांड का निर्माता माना जाता है।

देवी को अष्टभुजा के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उनकी 8 भुजाएं हैं। अपने 7 हाथों में वे धनुष, बाण, गदा, चक्र, कमल, कमंडलु और अमृत का कलश (दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए) धारण करती हैं और 8 वें हाथ में वह एक माला रखती हैं। अपने भक्तों को अष्टसिद्धि (8 प्रकार के ज्ञान स्रोत) और नवनिधि (9 प्रकार के धन) के साथ आशीर्वाद देती है। देवी सिंह पर विराजमान होती हैं, जिससे वह धर्म का प्रतिनिधित्व करती हैं। वह सूर्य के केंद्र में निवास करती हैं और सूर्य लोक के कामकाज की देखभाल करती हैं। उनके पास एक आकर्षक चेहरा और सुनहरे रंग का रूप है।

शांत और समर्पित मन से माता की पूजा की जाती है, उन्हें कद्दू की बलि पसंद है, क्योंकि उनके नाम कुष्मांड का संस्कृत भाषा में अर्थ है कद्दू। भक्त देवी का आशीर्वाद लेने के लिए रुद्राक्ष माला, भगवा वस्त्र और गेंदे के फूल चढ़ाते हैं। देवी की पूजा करने से उनके भक्तों के जीवन से संकट, दुख और बाधाएं दूर होती हैं। इतना ही नहीं जातक को नाम, प्रसिद्धि, स्वास्थ्य और शक्ति का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। नवरात्रि के चौथे दिन देवी लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है।

चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन यानी की चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को मां दुर्गा के चौथे रूप मां कुष्मांडा की पूजा-अर्चना की जाती है। हिन्दू धर्म में पूजा-अर्चना का कार्य शुभ मुहूर्त पर करना बेहद ही शुभ माना जाता है, यही कारण है कि व्यक्ति पूजा से लेकर वाहन खरीदने के लिए भी मुहूर्त का चुनाव करते हैं। साथ ही शुभ मुहूर्त के दौरान पूजा करने से जातक को माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनकी सभी मनोकामना भी पूर्ण हो जाती है।

नवरात्र के चौथे दिन आपको सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करना चाहिए। इसके बाद आपको पूजा के स्थान की अच्छे से साफ-सफाई करनी चाहिए। इसके बाद माता कुष्मांडा की पूजा करें। दुर्गा मां के स्वरूप की पूजा करने के लिए आपको लाल रंग का फूल, गुड़हल या फिर गुलाब के फूल को मां को अर्पित करना चाहिए।

साथ ही आपको सिंदूर, धूप, दीप और नैवेद्य आदि करना चाहिए। माता की पूजा करते समय आप हरे रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, क्योंकि यह शुभ माना जाता है। आप माता को पेठे, दही या हलवे का भोग लगा सकते हैं। माता को मालपुआ भी चढ़ाया जाता है। मान्यता के अनुसार मालपुआ चढ़ाने से मां प्रसन्न होती है और भक्तों पर अपना आशीर्वाद बनाए रखती हैं।

ऐसा भी माना जाता है कि दुर्गा मां के इस स्वरूप की विधि-विधान से पूजा और व्रत आदि करने से जातक के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और माता व्यक्ति को स्वस्थ शरीर का आशीर्वाद देती है। अंत में, आपको माता की आरती करनी चाहिए और मां का प्रसाद सभी लोगों में बांट देना चाहिए।

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