नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा से मिलती कार्य सिद्धि || Vaibhav Vyas


 नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा से मिलती कार्य सिद्धि

चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। वैसे तो नवरात्रि के सभी दिन बेहद खास होते हैं। पर नवमी तिथि की मान्यता कहीं अधिक मानी जाती है। नवरात्रि के 9वें दिन मां सिद्धिदात्री की आराधना के लिए विशेष माना जाता है। इसी तिथि पर भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन रामनवमी का पर्व भी मनाया जाता है। चैत्र माह के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि बेहद खास होती है। इसे महानवमी भी कहा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर अनुसार, इस साल चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि 30 मार्च, गुरुवार के दिन है।

नवरात्रि की नवमी तिथि पवित्र, परम कल्याणकारी, सुख देने वाली और धर्म की वृद्धि करने वाली है। नवरात्रि के 9वें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण है। नवमी तिथि को मां भगवती की पूजा करने से भक्तों के सभी कार्य सिद्ध होते हैं। इसके अलावा सारे विघ्न और कष्ट दूर होते हैं। वहीं, आज के दिन सच्चे मन से मां की आराधना करने से भक्तों को सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

माता सिद्धिदात्री की कृपा से अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर हर आम व्यक्ति सारे सुखों का भोग करता हुआ मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। नवदुर्गाओं में देवी सिद्धिदात्री अंतिम यानि नौवीं देवी स्वरूपा मानी जाती है। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं। साथ ही माता सिद्धिदात्री की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं पूरी हो जाती है।

देवी सिद्धिदात्री को मां दुर्गा का प्रचंड रूप कहा जाता है। ऐसे में शत्रु विनाश करने की अदमय ऊर्जा माता के अंदर समाहित होती है। कहते हैं जिस किसी भी भक्तों की पूजा से देवी प्रसन्न हो जाती है, तो उस जातक के शत्रु उसके इर्द-गिर्द भी नहीं टिक पाते हैं। 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक की कुंडली का छठा और ग्यारहवां भाव देवी सिद्धिदात्री की पूजा से मजबूत होता है। साथ ही माता की पूजा से व्यक्ति के तृतीय भाव में भी शानदार ऊर्जा उत्पन्न होती है। जिन भी जातकों के जीवन में शत्रु भय अधिक बढ़ गया हो या कानूनी मामले ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहे हो या अदालत से संबंधित मामलों में जातक को सफलता ना मिल रही हो, तो ऐसे जातकों को देवी सिद्धिदात्री की पूजा करनी चाहिए, इससे जातक को शुभ फल प्राप्त हो सकता है और जातक की सभी परेशानी खत्म हो जाएगी।

अष्टमी तिथि के साथ-साथ कुछ लोग नवमी तिथि के दिन भी कन्या पूजन करते हैं।

नवमी तिथि के दिन सबसे पहले कन्याओं को 1 दिन पूर्व या समय से निमंत्रण देना चाहिए। 

घर आने के बाद कन्याओं को एक साफ आसन दें और उनके चरण धोने चाहिए। 

इसके बाद कन्याओं को लाल रंग की चुनरी भेंट करें।

आप कन्याओं की पंचोपचार विधि से पूजा करें और उन्हें भोजन कराएं। 

आपको इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि भोजन में कुछ मीठा अवश्य शामिल हो। 

भोजन कर लेने के बाद कन्याओं के पैर और हाथ वापस धुलाकर उनका तिलक करें और अपनी श्रद्धा से उन्हें उपहार भेंट जरूर करें। 

अंत में, कन्याओं के चरण छूकर उनका आशीर्वाद जरूर लें।

माना जाता है कि कन्या पूजन से घर में सुख-समृद्धि आती है और दुख दरिद्रता का नाश होता है। साथ ही माता को प्रसन्न करने के लिए भी कन्या पूजन बेहद ही उपयुक्त साधन बताया गया है। हालांकि, कन्या पूजन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि जिन कन्याओं को आपने अपने घर पर निमंत्रण दिया है या जिन्हें भोजन करा रहे हैं उनकी उम्र 2 से 10 वर्षों के बीच होनी चाहिए। मुमकिन हो तो कम से कम 9 कन्याओं को भोजन जरूर कराएं। साथ ही, कन्या पूजन में हमेशा एक बालक को भी शामिल करना चाहिए। माना जाता है कि बालक बटुक भैरव का रूप होते हैं और इनके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।

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