व्रत की कथा सुनने से होते मनोरथ पूर्ण || Vaibhav Vyas


 व्रत की कथा सुनने से होते मनोरथ पूर्ण

किसी भी व्रत को विधि-विधान से करने के पश्चात उससे संबंधित कथा का श्रवण-वाचन करना व्रत की पूर्णता दिलाने वाला होता है। ऐसे में जिस भी तिथि के दिन जो भी व्रत किया जाए तो उससे व्रत से संबंधित भगवान की कथा का श्रवण-वाचन करने से सभी मनोरथ पूर्ण होकर सुख-शांति और समृद्धि बनी रहने वाली होती है।

ऐसे ही गणेश जी के चतुर्थी व्रत के दिन उनकी पूजा-उपासना के बाद गणेश जी की कथा का श्रवण-वाचन करने से व्रत का पूरा लाभ मिलने वाला रहता है।

चतुर्थी व्रत कथा- सतयुग में एक धर्मात्मा युवनाश्व राजा था। उसके राज्य में वेदपाठी धर्मात्मा विष्णु शर्मा ब्राह्मण रहता था। उसके सात पुत्र थे और सभी अलग अलग रहने लगे। विष्णु शर्मा क्रम से सातों के यहाँ भोजन करता हुआ वृद्धावस्था को प्राप्त हुआ। बहुएं अपने ससुर का अपमान करने लगी।

एक दिन गणेश चौथ का व्रत करके अपनी बड़ी बहू के पास घर गया और बोला बहू आज गणेश चौथ हैं, पूजन की सामग्री इकठ्ठी कर दो। बहू बोली घर के काम  से छुट्टी नही हैं, तुम हमेशा कुछ न कुछ लगाये रहते हो अभी नही कर सकते ऐसे अपमान सहते हुए अंत में सबसे छोटी बहू के घर गया और पूजन की सामग्री की बात कही तो उसने कहा आप दु:खी न हो मैं अभी पूजन सामाग्री लाती हूँ।

वह भिक्षा मांग करके सामान लाई, स्वयं व अपने ससुर के लिए सामग्री इकठ्ठा कर दोनों ने भक्ति-पूर्वक विघ्ननाशक की पूजा की। छोटी बहू ने ससुर को भोजन कराया और स्वयं भूखी रह गई। आधी रात को विष्णु शर्मा को उल्टी होने लगी, दस्त होने लगे। उसने अपने ससुर के हाथ पांव धोये. सारी रात  दु:खी रही और जागरण करती रही। प्रात:काल हो गया। श्री गणेश की कृपा से ससुर की तबियत ठीक हो गई और घर में चारो ओर धन ही धन दिखाई देने लगा जब और बहुओ ने छोटी बहू का धन देखा तो उन्हें बड़ा दु:ख हुआ उन्हें अपनी गलती का भान हुआ वे भी क्षमा मागते हुए गणेश व्रत को विधि-पूर्वक पूर्ण करके उनसे समृद्धि पाई।

इस प्रकार व्रत के पश्चात कथा का श्रवण-वाचन करने से व्रत पूर्ण होकर सभी मनोरथ पूर्ण करने वाला बन जाता है।

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