षटतिला पर 6 प्रकार से करें तिल का प्रयोग || Vaibhav Vyas


 षटतिला पर 6 प्रकार से करें तिल का प्रयोग

हिंदू परंपरा में एकादशी को पुण्य कार्य और भक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। माघ मास की कृष्ण पक्ष की आने वाली एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है। पद्म पुराण में बताया है कि जो भी भक्त षटतिला एकादशी के दिन उपवास करते हैं, दान, तर्पण और विधि-विधान से पूजा करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनके सभी पापों का अंत होता है।

पुराणों में बताया गया है कि जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और स्वर्ण दान से मिलता है, उससे अधिक फल एक मात्र षटतिला एकादशी करने से मिलता है। इस व्रत को करने से घर में सुख-शांति का वास होता है। मनुष्य को भौतिक सुख तो प्राप्त होता ही है, मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। इस दिन की गई पूजा का विशेष महत्व है।

6 प्रकार से करें तिल का प्रयोग- षटतिला यानी तिलों के छह प्रकार के प्रयोग से युक्त एकादशी। इस एकादशी के दिन तिलों का प्रयोग छह प्रकार से किया जाता है। पहला तिल मिश्रित जल से स्नान, दूसरा तिल के तेल से मालिश, तीसरा तिल से हवन, चौथा तिल वाले पानी का सेवन, पांचवां तिल का दान और छठा तिल से बने पदार्थों का सेवन।

कोई भी एकादशी हो उस एकादशी से संबंधित कथा का श्रवण-वाचन करने से उस व्रत की पूर्णता मानी जाती है और व्रत का पूर्ण फल मिल पाता है। इसीलिए जिस एकादशी के दिन व्रत रखा जाए उस दिन कथा का श्रवण-वाचन अवश्य करें।

षटतिला एकादशी व्रत कथा- पद्म पुराण के अनुसार, एक महिला भगवान विष्णु की परम भक्त थी और वह पूजा, व्रत आदि श्रद्धापूर्वक करती थी। व्रत रखने से उसका मन और शरीर तो शुद्ध हो गया था। लेकिन उसने कभी भी अन्न का दान नहीं किया था। जब महिला मृत्यु के बाद बैकुंठ पहुंची तो उसे खाली कुटिया मिली। महिला ने बैकुंठ में भगवान विष्णु से पूछा कि मुझे खाली कुटिया ही मिली है? तब भगवान ने बताया कि तुमने कभी कुछ दान नहीं किया है इसलिए तुम्हें यह फल मिला। मैं तुम्हारे उद्धार के लिए एक बार तुम्हारे पास भिक्षा मांगने आया था तो तुमने मुझे मिट्टी का एक ढेला पकड़ा दिया। अब तुम षट्तिला एकादशी का व्रत करो। जब महिला ने व्रत किया तो व्रत पूजन करने के बाद उसकी कुटिया अन्न-धन से भर गई और वह बैकुंठ में अपना जीवन हंसी-खुशी बिताने लगी।

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