जया एकादशी व्रत से मिलती श्री हरि की कृपा || Vaibhav Vyas


 जया एकादशी व्रत से मिलती श्री हरि की कृपा

माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी जया एकादशी कहलाती है. जया एकादशी व्रत बेहद शुभ फल देने वाला है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-पाठ कर दिन भर उपवास रखने से भक्तगण पर सृष्टि रचियता भगवान विष्णु की विशेष कृपा बनी रहती है।  व्यक्ति यदि जया एकादशी का व्रत रखता है, तो उसके सभी पाप धुल जाते है। ऐसी भी मान्यता है, कि जया एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को भूत, प्रेत, पिसाच जैसी नीच योनियों में जाने का डर नहीं होता है। धर्मराज युधिष्ठिर के कहने पर श्रीकृष्ण ने खुद इस व्रत की कथा सुनाई थी।

इंद्र की सभा में था उत्सव

इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था। देवगण, संत, दिव्य पुरुष सभी उत्सव में उपस्थित थे। उस समय गंधर्व गीत गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था जो बहुत ही सुरीला गाता था। जितनी सुरीली उसकी आवाज़ थी उतना ही सुंदर रूप था। उधर गंधर्व कन्याओं में एक सुंदर पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी। पुष्यवती और माल्यवान एक-दूसरे को देखकर सुध-बुध खो बैठते हैं और अपनी लय व ताल से भटक जाते हैं। उनके इस कृत्य से देवराज इंद्र नाराज हो जाते हैं और उन्हें श्राप देते हैं कि स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगोगे।

श्राप के प्रभाव से वे दोनों प्रेत योनि में चले गए और दुख भोगने लगे। पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था। दोनों बहुत दुखी थे। एक समय माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था। पूरे दिन में दोनों ने सिर्फ एक बार ही फलाहार किया था। रात्रि में भगवान से प्रार्थना कर अपने किये पर पश्चाताप भी कर रहे थे। इसके बाद सुबह तक दोनों की मृत्यु हो गई। अनजाने में ही सही लेकिन उन्होंने एकादशी का उपवास किया और इसके प्रभाव से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई और वे पुन: स्वर्ग लोक चले गए।

श्रीकृष्ण अवतार की होती है पूजा- जया एकादशी व्रत के लिए उपासक को व्रत से पूर्व दशमी के दिन एक ही समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। व्रती को संयमित और ब्रह्मचार्य का पालन करना चाहिए। प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि अर्पित करके भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार की पूजा करनी चाहिए। रात्रि में जागरण कर श्री हरि के नाम के भजन करना चाहिए।

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