व्रत का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है || Vaibhav Vys


 व्रत का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है

धार्मिक दृष्टिकोण से तो हर व्रत का अपना अलग महत्व होता है, लेकिन साथ ही इसके पीछे इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है, जिसके चलते डाक्टर भी सप्ताह में एक दिन व्रत की सलाह देते हैं। हमारे शरीर के प्राकृतिक चक्र से जुड़ी 'मंडलÓ नाम की एक चीज होती है । मंडल का मतलब है कि हर 40 से 48 दिनों में शरीर एक विशेष चक्र से गुजरता है।  हर चक्र में 3 दिन (हर 11 से 14 दिन के बीच में एक दिन) ऐसे होते हैं जिनमें शरीर को भोजन की आवश्यकता नहीं होती है। भूख का एहसास कम होता है। उस दिन बिना कुछ खाये भी रहा जा सकता है। मनुष्यों के साथ कुछ जानवर भी उपवास करते हैं। उस दिन को शरीर की सफाई का दिन भी कहते हैं।

हमारे ऋषि-मुनि तो हजारों वर्ष पहले से कहते आ रहे हैं और शास्त्रों में भी एकादशी के दिन उपवास करने का विधान दिया गया है। हिन्दी महीनों के अनुसार हर 14-15 दिन में एक बार एकादशी आती है।

हमारे धर्म शास्त्रों में एकादशी व्रत की बड़ी भारी महिमा बखानी गई है। 5 कर्मेन्द्रियों, 5 ज्ञानेन्द्रियों और 11वें मन को संयत करने वाला व्रत एकादशी का व्रत है। यह शरीर के रोगों को तो मिटाता है, मन के दोषों को भी निवृत्त करता है, बुद्धि को ओजस्वी-तेजस्वी बनाता है, भगवद्भक्ति में पुष्टि, योग में सफलता एवं मनोवांछित फल देता है।

वात-पित्त-कफ जनित दोष अथवा समय-असमय खाये हुए अन्न आदि के जो दोष 14 दिन में इक_े होते हैं, 15वें दिन एकादशी का व्रत रखा तो वे दोष निवृत्त होते हैं। जो विपरीत रस या कच्चा रस नाडिय़ों में पड़ा है, जो बुढ़ापे में मुसीबत देगा, व्रत उसको नष्ट कर देता है। इससे शरीर जल्दी रोगी नहीं होगा। एकादशी को चावल खाने से स्वास्थ्य-हानि, पापराशि की वृद्धि कही गयी है।

इस दिन हो सके तो निर्जल रहें, नहीं तो थोड़ा जल पियें। ठंडा जल पीने से मंदाग्नि होती है, गुनगुना जल पियें, जिससे जठर की भूख बनी रहे और नाडिय़ों में जो वात-पित्त-कफ के दोष जमा हैं, उन्हें खींचकर जठर उनको पचा दे, आरोग्य की रक्षा हो। जल से गुजारा न हो तो थोड़े-से फल खा लें और थोड़े-से फल से भी गुजारा न हो तो मोरधन आदि की खिचड़ी खा ली थोड़ी, इसके अलावा अन्य वस्तुएं वर्जित मानी गई है।

विज्ञान भी इस बात को मानता है कि जो तीसों दिन खाना खाते हैं वे जल्दी बूढ़े होते हैं और बीमारियों के घर हो जाते हैं। हफ्ते में एक दिन व्रत रखें, नहीं तो 15 दिन में एक बार एकादशी का व्रत अवश्य रखना ही चाहिए। लेकिन बूढ़े, बालक, गर्भिणी, प्रसूतिवाली महिला तथा जिनको मधुमेह है, जो अति कमजोर हैं वे व्रत न रखें तो चल जायेगा।

एकादशी के दिन कुछ बातों का ध्यान भी रखें- जैसे- (1) बार-बार पानी नहीं पियें  (2) वाणी या शरीर से हिंसा न करें  (3) अपवित्रता का त्याग करें  (4) असत्य भाषण न करें  (5) पान न चबायें  (6) दिन को नींद न करें  (7) संसारी व्यवहार - मैथुन भूलकर भी न करें  (8) जुआ और जुआरियों की बातों में न आयें  (9) रात को शयन कम करें, थोड़ा जागरण करें (रात्रि 12 बजे तक)  (10) पतित, हलकी वार्ता करें-सुनें नहीं  (11) दातुन न चबायें, मंजन कर लें।

सुबह संकल्प करें- एकादशी के दिन सुबह संकल्प करें कि 'आज का दिन सारे पापों को जलाकर भस्म करनेवाला, आरोग्य के कण बढ़ानेवाला, रोगों के परमाणुओं को नष्ट करनेवाला, नाडिय़ों व मन की शुद्धि करनेवाला, बुद्धि में भगवद्भक्ति भरनेवाला तथा ओज, बल और प्रसन्नता देनेवाला हो। देवी! तेरे नाम का मैं व्रत करता हूँ । फिर नहा-धोकर भगवद् पूजा, ध्यान, सुमिरन, जप करें।

Comments